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March 2, 2017

ब्यावर जिले की राह में रोड़ा !

-सुमित सारस्वत-

राज्य बजट पेश होने से चंद रोज पहले एक बार फिर ब्यावर जिला बनने की चर्चा सुर्खियों में है। सोशियल मीडिया से शुरू हुई सुगबुगाहट समाचार पत्रों की सिरमौर खबर बनने के साथ ही सत्ता के गलियारे में भी घूम रही है। वर्षों से अपने हक की मांग को लेकर टकटकी लगाए बैठे शहरवासी चाहते हैं कि सीमेंट व तिलपट्टी उद्योग के कारण विश्व पटल पर पहचाने रखने वाला ब्यावर जिला बने मगर ब्यावर जिला बनना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन प्रतीत हो रहा है। वजह यह कि कुछ लोग ब्यावर जिले की राह में रोड़ा बन रहे हैं। इनमें बड़े उद्योग घराने व कुछ स्वार्थपरक जनप्रतिनिधि शामिल हैं।
सूत्रों के मुताबिक कुछ जनप्रतिनिधि नहीं चाहते कि ब्यावर को जिला घोषित किया जाए। इन्होंने राजधानी पहुंचकर ब्यावर जिला घोषित नहीं होने का प्रयास किया है। माना जा रहा है कि अभी ब्यावर जिला घोषित होने से इन नेताओं का राजनीतिक भविष्य खतरे में पड़ सकता है। यह नहीं चाहते कि जिला बनवाने से किसी ऐसे नेता को लाभ मिले जिसके खिलाफ सभी बगावत का बिगुल बजा रहे हैं। इनकी मंशा है कि सरकार आगामी बजट में ब्यावर जिले की घोषणा नहीं करे। दरअसल कुछ दिन पहले खबर आई थी कि आगामी राज्य बजट में सरकार नए जिलों की घोषणा करेगी। इसमें ब्यावर का नाम प्रमुखता से शामिल है। प्रादेशिक चैनल और सोशियल मीडिया पर यह खबर प्रसारित होने के बाद कईयों की नींद उड़ गई। कुछ क्रेडिट लेने की होड़ में लग गए तो कुछ यह सोचने लगे कि अगर जिले की घोषणा हुई तो व्यक्ति विशेष को लाभ मिल जाएगा।
पहले विपक्षी सरकार के कार्यकाल में जिले की मांग को लेकर पदयात्रा करने वाले क्षेत्रीय विधायक को भी इस बात की भनक नहीं थी कि सत्तारूढ़ सरकार आगामी बजट में जिले की घोषणा कर सकती है। चर्चाओं और कयासों का कारवां बढ़ने पर क्रेडिट बटोरने के लिए इन्होंने भी बयान देकर यह जताने का प्रयास कि वह ब्यावर को हक दिलाने के लिए आज भी सरकार से लड़ाई लड़ रहे हैं। दूसरी ओर लोगों में इस बात की चर्चा होने लगी कि जो नेता सत्ता में कड़ी से कड़ी जुड़े होने के बावजूद प्रदेश की पहली परिषद होने का सौभाग्य प्राप्त नगर परिषद में महीनों से आयुक्त नहीं लगवा पाए वो ब्यावर को जिला क्या बनवा पाएंगे। बात में दम भी है। इतनी बड़ी नगर परिषद का कार्यभार कार्यवाहक अधिकारी के हाथ में है। कुछ नेताओं को यह कतई रास नहीं आया कि ब्यावर जिला घोषित हो और किसी एक व्यक्ति को लाभ मिले। यह ठीक वैसा ही घटनाक्रम लगा जैसा 29 नवंबर 2014 को ब्यावर नगर परिषद में सभापति बनाने को लेकर हुआ। आखिर ब्यावर जिले की मांग तो बरसों पुरानी है। इस हक के लिए तो कई दलों के नेताओं और शहरवासियों ने लड़ाई लड़ी है। ‘बस इतनी-सी बात पानी को अखर गई, एक कागज की नाव मुझ पर कैसे चल गई’ शायद दूसरे कुछ नेताओं को भी ऐसा लगा और उन्होंने रूकावट के लिए राह में रोड़ा बनना शुरू कर दिया।
क्षेत्र के बड़े उद्योग घराने भी नहीं चाहते कि ब्यावर जिला बने। उत्तर भारत की बड़ी सीमेंट कंपनियों में शुमार क्षेत्र की तीनों बड़ी कंपनियों के लिए ब्यावर जिला मुसीबत खड़ी कर सकता है। क्षेत्र में चलने वाली सैंकड़ों मिनरल फैक्ट्रियों पर मंडरा रहा संकट भी बढ़ जाएगा। ब्यावर अलग होने से अजमेर जिले का राजस्व भी घट जाएगा। अभी अजमेर को आय का एक बड़ा हिस्सा ब्यावर से मिल रहा है। जिला बनने के बाद भीम भी संभवतः राजसमंद से अलग होकर ब्यावर में शामिल हो जाएगा। ऐसे में मगरा विकास बोर्ड के अध्यक्ष का ताज पहने भीम विधायक नहीं चाहेंगे कि क्षेत्रवासियों की किसी नाराजगी का सामना करना पड़े। ऐसा ही हाल केबिनेट मंत्री की कुर्सी पर बैठे जैतारण विधायक का भी है। वह भी अपने क्षेत्र को किसी नए जिले में शामिल होने का खतरा नहीं लेना चाहेंगे। दरअसल अजमेर से अलग होकर राजसमंद संसदीय क्षेत्र में शामिल होने के बाद ब्यावर की जो दुर्गति हुई वो जगजाहिर है। ऐसे में कोई जोखिम मोल नहीं लेना चाहता। अगर यही हाल रहे तो मुंगेरीलाल के हसीन सपने की तरह हजारों आंखों में देखा गया ब्यावर जिले का सपना न जाने कब पूरा होगा! काश यह सपना अब पूरा हो जाए ताकि बरसों से बैचेनी में करवट बदल रहे जिले के हजारों हकदार चैन की नींद सो सके।
अनूठा रहा है इतिहास
एक फरवरी 1836 को अंग्रेज शासक कर्नल डिक्सन द्वारा बसाए गए ब्यावर का इतिहास अनूठा रहा है। यह शहर सलीब (क्रॉस) की आकृति में बसा है। स्थापना से सौ वर्ष तक ब्यावर मेरवाड़ा स्टेट रहा। स्वतंत्र भारत में केंद्र शासित प्रदेश रहा। एक नवंबर 1956 को राजस्थान प्रदेश का सबसे बड़ा उपखण्ड बना। सूती कपड़ा मिलों के कारण इतिहास में राजस्थान का मैनचेस्टर कहलाया। यहां ऊन, रुई, सर्राफा और अनाज की राष्ट्रीय स्तर की मण्डी रही। वर्ष 1920 में कांग्रेस का सक्रिय आंदोलन यहीं से प्रारंभ हुआ। वर्ष 1975 में नगर सुधार न्यास की स्थापना हुई जिसे 1978 में हटा दिया गया। राजस्थान की पहली नगर परिषद ब्यावर में स्थापित हुई। मिशनरी कार्य की शुरूआत ब्यावर से हुई। प्रदेश का पहला चर्च ब्यावर में ही बना। इतना ही नहीं ब्यावर शहर आजादी के दीवानों और स्वतंत्रता सैनानियों की कर्मस्थली और शरणस्थली भी रहा है। देश में नई क्रांति लाने वाला सूचना का अधिकार कानून भी ब्यावर की ही देन है।
फिर कभी नहीं बन पाएगा ब्यावर जिला !
14वीं विधानसभा का 8वां बजट सत्र गत गुरुवार से प्रारंभ हो गया है। सूत्रों के मुताबिक आगामी चुनाव रणनीति को ध्यान में रखते हुए सरकार इस बार राज्य बजट में नए जिलों की घोषणा कर सकती है। प्रदेश का 33वां जिला भी वसुंधरा सरकार ने ही घोषित किया था और अब माना जा रहा है कि 34वें जिले की घोषणा भी यही सरकार करेगी। प्रदेश का 13वां बड़ा शहर कहलाने वाला ब्यावर भी बरसों से जिले की कतार में पहले पायदान पर खड़ा है मगर राजनीतिक उदासीनता और अनदेखी के कारण इस शहर की पीढ़ियां इंतजार में गुजर रही है। चंद रोज पहले पूरी उम्मीद बनी थी कि इस बार तो तिलपट्टी वाली मीठी नगरी को सरकार सौगात अवश्य देगी मगर अब माना जा रहा है कि सरकार के गलियारे में चंद चेहरे दिखाई देने के बाद टेबल पर कागजों का क्रम बदल गया है। अगर सरकार इस बार नए जिले की घोषणा करती है और उसमें ब्यावर का नाम शामिल नहीं हो तो फिर कभी ब्यावर जिला बनने की उम्मीद नहीं की जा सकती। क्योंकि भाजपा सरकार ब्यावर की अनदेखी कर रही है और कांग्रेस सरकार पहले ही स्पष्ट मना कर चुकी है कि ब्यावर जिला बनने योग्य नहीं है। इन सबके बावजूद जगद्गुरु शंकराचार्य निरंजनदेव तीर्थ की नगरी के वासियों को उम्मीद है कि सरकार आगामी 8 मार्च को पेश होने वाले राज्य बजट में जिले की घोषणा कर ब्यावर को बड़ी सौगात देगी। -सुमित सारस्वत ‘SP’, सामाजिक विचारक, मो.9462737273
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