शाम ढलती रही और हम चुप रहे
चाँदनी चाँद में ही सिमटती रही
बात की भी नहीं बात होने लगी
शब्द थे मौन और आँख कहती रही!
इस तरह तुम हमें हो मिले भाग्य से
साधना से मिला कोई वरदान हो
पत्थरों में अगर पूज सकते खुदा
साँस लेते हुए तुम तो इंसान हो
आज तक था मेरा हाल क्या मैं कहूँ
रेत पर मछलियों सी तड़पती रही!
बात की भी नहीं बात होने लगी
शब्द थे मौन और आँख कहती रही!
नन्दिनी श्रीवास्तव "हर्ष"
चाँदनी चाँद में ही सिमटती रही
बात की भी नहीं बात होने लगी
शब्द थे मौन और आँख कहती रही!
इस तरह तुम हमें हो मिले भाग्य से
साधना से मिला कोई वरदान हो
पत्थरों में अगर पूज सकते खुदा
साँस लेते हुए तुम तो इंसान हो
आज तक था मेरा हाल क्या मैं कहूँ
रेत पर मछलियों सी तड़पती रही!
बात की भी नहीं बात होने लगी
शब्द थे मौन और आँख कहती रही!
नन्दिनी श्रीवास्तव "हर्ष"