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November 29, 2017

पहली बार रामकथा में बजेगा राष्ट्रगान, फहराएगा तिरंगा | National Anthem in Ram Katha

भारतीय सेना को समर्पित सूरत की रामकथा अनूठी होगी। इस कथा का आरंभ राष्ट्रगान के साथ होगा। कथा से पूर्व तिरंगा फहराया जाएगा। कथा स्थल को तिरंगे के केसरिया, सफेद, हरा रंग के कपड़े से सजाया जा रहा है। हर कथा के प्रारंभ में पोथीयात्रा निकाली जाती है। प्रथा है कि यह पवित्र पोथी आयोजक या उसका परिवार लेकर चलता है लेकिन सूरत कथा में पाेथी सैनिकों और हाल ही अहमदाबाद के शहीद परिवार के सिर पर होगी। सैनिकों और शहीद परिवारों को समर्पित यह राम-राष्ट्रकथा आगामी 2 से 10 दिसंबर तक होगी। इस कथा में 200 करोड़ रुपए एकत्रित कर सैनिक कल्याण के लिए दान किए जाएंगे।


राम-राष्ट्रकथा के लिए अब तक दो दुल्हन ने अपनी शादी के संगीत समारोह व अन्य कार्यक्रम रद्द कर राशि को कथा में दान दी है। मूल अमरेली के मोटा लीलिया तालुका के भेंसाण गांव निवासी कांतिभाई मांगरोलिया की बेटी डॉ. नतल की शादी 23 दिसंबर को होने वाली है। उसने संगीत का कार्यक्रम रद्द कर 51 हजार रुपए कथा में दान दिए। इसके अलावा एक हफ्ते पहले वराछा में वल्लभाचार्य रोड पर कैलाशधाम सोसाइटी में रहने वाले हरेश मालाणी की बेटी जानकी ने 51 हजार रुपए दान दिए। जानकी की शादी 12 दिसंबर को है। शादी में संगीत संध्या रखी गई थी, उसके लिए 50 हजार से ज्यादा का खर्च होना था। यह कार्यक्रम रद्द कर 51 हजार रुपए कथा में दान किया। इसके अलावा रिटायर्ड एसीपी आरएच हडिया को बहादुरी के लिए हर माह 2000 रुपए मिलते हैं। उन्होंने एक साल की रकम 24 हजार दान में दी। -सुमित सारस्वत, मो.09462737273



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सूरत में सैनिकों के लिए होगी देश की सबसे बड़ी रामकथा, 500 ‌दिन से चल रही तैयारी | Biggest Ram Katha in Surat

गुजरात राज्य के सूरत में देश की सबसे बड़ी रामकथा होगी। यहां पूणा बीआरटीएस के पास 500 बीघा जमीन पर बन रहे भव्य पांडाल में अंतर्राष्ट्रीय संत मोरारी बापू कथा करेंगे। यह कथा सैनिकों और शहीद परिवारों को समर्पित होगी। कथा के यजमान भी सैनिक होंगे। इस कथा के लिए आयोजन स्थल को सैन्य प्रदर्शनी की तरह सजाया जा रहा है। कथा की भव्यता का अंदाजा इस  बात से लगाया जा सकता है कि नौ दिन की राम कथा के लिए 500 ‌दिन से तैयारी हो रही है। कथा में हर दिन 5000 स्वयंसेवक सेवा देंगे। 300 बीघा में तो सिर्फ पार्किंग होगी।


आगामी 2 से 10 दिसंबर तक सैनिक कल्याण के उद्देश्य से हो रही इस कथा को नाम दिया गया है राम-राष्ट्रकथा। इस कथा में 200 करोड़ रुपए एकत्रित कर दान किए जाएंगे। यहां असली टैंक भी स्थापित किया जा रहा है, जो सेना ने सूरत नगरपालिका को भेंट दिया था। कथा में प्रतिदिन करीब 1.5 लाख श्रोता आने का अनुमान है। सेवा के लिए 100 से ज्यादा सदस्यों वाली 43 कमेटियां बनाई गई है। जिन्हें भोजन, पानी, सब्जी, यातायात जैसी अलग-अलग व्यवस्थाएं सौंपी गई  है। हर श्रोता को अच्छे भोजन के लिए 6 लाख वर्ग फीट की रसोई बन रही है। मारुति वीर जवान ट्रस्ट के प्रमुख यजमान ननुभाई सावलिया ने बताया कि फरवरी 2015 में सैनिक कल्याण हेतु विचार आया था और तब से ही काम चल रहा है। दिसंबर का समय इसलिए रखा, ताकि विदेशी मेहमान भी आ सकें। माना जा रहा है कि कथा के नौ दिनों के लिए प्रतिदिन का खर्च करीब सवा से डेढ़ करोड़ रुपए आएगा। उन्होंने बताया कि हमने करीब 30 किसानों से यह जगह किराए पर ली। करीब करोड़ रुपए उन्हें दिए भी गए लेकिन सभी किसानों ने उद्देश्य समझने के बाद पैसे वापस लौटा दिए। पैसे वापस नहीं लिए जा सकते थे, उन्हें दान में शामिल कर लिया गया। इस कथा में विदेश से भी 500 से अधिक लोग शामिल होंगे। इनमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, न्यूजीलैंड व दक्षिण अफ्रीका के श्रोता ज्यादा होंगे। -सुमित सारस्वत, मो.09462737273


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November 27, 2017

श्मशान में रचाई शादी, चिता के लिए फेरे | Marriage in Shamshan


जिस श्मशान में जाने से लोग खौफजदा हो जाते हैं वहां एक युगल ने शादी रचाकर नए जीवन की शुरुआत की। सुनकर यकीन नहीं हुआ होगा मगर यह सच है। गुजरात के भावनगर जिले में महुवा के श्मशान को सुन्दर सजाया गया। यहां वर-वधु ने चिता के फेरे लेकर दांपत्य जीवन की शुरुआत की।
दरअसल गत अक्टूबर माह में कथावाचक मोरारी बापू ने मोक्ष नगरी काशी में नौ दिवसीय रामकथा में मुक्तिधाम का महत्व बताते हुए कहा था कि जन्म और मृत्यु का उत्सव श्मशान भूमि में मनाना चाहिए। इससे प्रेरणा लेकर महुवा में रविवार को एक पुजारी के बेटे ने श्मशान भूमि से ही वैवाहिक जीवन की शुरुआत की। दूल्हे घनश्याम और दुल्हन पारुल ने चिता के फेरे लेकर वैवाहिक रस्म निभाई। इस मौके पर वर और वधू पक्ष के सभी लोग मौजूद रहे और उन्होंने जोड़े को सफल जीवन का आशीर्वाद दिया।
श्मशान घाट जहां मनहूसियत का आलम होता है, वहां इस बार रौनक थी और लोगों के चेहरे खुशी से खिले थे। घनश्याम ने कहा, ‘मोरारी बापू ने कहा था कि मसान महातीर्थ है। तभी संकल्प ले लिया था कि श्मशान में ही विवाह करूंगा। पारुल से कहा कि सुनते तो सब हैं, लेकिन अमल भी करना जरूरी है। पारुल भी इसके लिए तैयार हो गई।’ -सुमित सारस्वत, मो.9462737273

पंडित ने मना किया तो बापू ने करवाए फेरे
श्मशान में शादी करने की इच्छा लेकर यह जोड़ा मोरारी बापू के जन्मस्थल तलगाजरडा में उनसे मिला और बापू ने उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया। श्मशान में शादी करवाने के लिए जब कोई पंडित तैयार नहीं हुआ तो खुद मोरारी बापू श्मशान पहुंचे। उन्होंने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच श्मशान घाट पर घनश्याम और पारुल की शादी संपन्न कराई। खास बात यह रही है कि श्मशान घाट पर शादी की सभी रस्में पूरी की गईं।


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मृत्यु सच्चाई है इसका उत्सव मनाएं
विवाह के मौके पर श्मशान भूमि का महत्व समझाते हुए मोरारी बापू ने कहा, 'मृत्यु पीड़ा लेकर आती है लेकिन यह महादेव का खेल है। श्मशान में हम सदा के लिए सो जाते हैं लेकिन यही वह जगह है जहां से हम सदा के लिए जाग सकते हैं। श्मशान घाट सत्य, प्रेम, करुणा को दर्शाता है।' राम कथा वाचक ने सत्य, प्रेम और करुणा को समझाते हुए कहा कि मृत्यु जीवन की एकमात्र सच्चाई है जिसका हमें उत्सव मनाना चाहिए। जबकि श्मशान में जलने वाली चिता जाति-धर्म और कर्मों से ऊपर उठकर सभी को स्वीकार करती है, चिता के लिए सभी के प्रति प्रेम होता है। श्मशान घाट पर ही करुणा का प्रादुर्भाव होता है जहां भगवान शिव मोक्ष प्रदान कर सकते हैं।

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उम्मीद है यहां होंगे सामूहिक विवाह
मोरारी बापू ने कहा कि श्मशान अति पवित्र भूमि है। यहां आने से जीवन में वैराग्य भाव नहीं आता। उम्मीद है कि श्मशान भूमि में सामूहिक विवाह भी होंगे। दुल्हन पारुल ने कहा कि बापू से मिलकर उनकी सारी शंकाएं दूर हाे गईं। इसलिए वह श्मशान में फेरों को तैयार हो गई।

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November 19, 2017

विरोध के बीच दीपिका ने बिग बॉस के घर में किया पद्मावती का प्रमोशन, बोली- एक दिसंबर को रिलीज होगी फिल्म

पूरे देश में हो रहे विरोध प्रदर्शन के बीच पद्मावती फिल्म की मुख्य किरदार अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने बिग बॉस के घर जाकर फिल्म का प्रमोशन किया। यहां दीपिका ने प्रतिभागी शिल्पा को पद्मावती खिताब से नवाजा। घर के सभी सदस्यों के साथ घूमर गाने पर नृत्य किया।

इसके बाद दीपिका ने सलमान से मुलाकात के दौरान कहा कि फिल्म पद्मावती एक दिसंबर को रिलीज होगी। उन्होंने देश में फैले आक्रोश पर सफाई देते हुए यह खुलासा कि फिल्म में खिलजी का भूमिका निभा रहे रणवीर सिंह के साथ उनका कोई सीन नहीं है। दीपिका के इतना कहते ही सलमान ने समर्थन में 6-7 बार इसी बात को दोहराते हुए कहा कि ‘सुना आपने, फिल्म पद्मावती में दीपिका और रणवीर का कोई सीन नहीं है।’ अलग-अलग कैमरों के सामने बार-बार एक ही बात दोहराते हुए सलमान विरोधियों के जवाब में फिल्म की हिमाकत करते दिखे। सलमान ने फिल्म का एक डायलॉग भी सुनाया। बातचीत के दौरान सलमान के एक सवाल पर दीपिका ने कहा कि वे संजय लीला भंसाली से शादी करेंगी। यह सुनते ही सलमान तपाक से बोले, यह शादी चलेगी नहीं। -सुमित सारस्वत

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गिरीराज धरण की शरण में मोरारी की मानस परिक्रमा पूरी

नौ दिन पूर्व गोवर्धन से आरंभ हुई ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा रविवार को पुनः गिरीराज धरण की शरण में पहुंचकर पूरी हुई। आखरी पड़ाव पर अपनी 801वीं रामचरितमानस कथा के विराम से पूर्व संत मोरारी बापू ने परिक्रमा से प्राप्त होने वाले परिणाम पर प्रवचन दिए। उन्होंने कहा कि मानस परिक्रमा से दस फल प्राप्त होते हैं जिसकी जरूरत सभी को है। उत्साह, अनुराग (प्रेम), विराग (वैराग्य), दृढ़ भक्ति, मनोरथ, भवतरण, विजय, विवेक, विभूति (ऐश्वर्य), परम विश्राम।
बापू ने कहा कि रामकथा से उत्साह बढ़ता है। चाहे कितनी भी परेशानी आ जाए, उदास कभी न हों। जीवन में प्रेम होना बेहद जरूरी है। प्रेम में कोेई हित नहीं होना चाहिए। वैराग्य का पात्र अनुराग रूपी अमृत को सुरक्षित रखता है। भक्ति निरंतर बढ़नी चाहिए। मनोरथ पूर्ति होनी चाहिए। कथा श्रवण-भजन जारी रहे। विजय के साथ विवेक जरूरी है। बिना विवेक अहंकार आ जाएगा।

बापू ने कथा प्रसंग सुनाते हुए कहा कि सेतुबंध राम का ईश्वर है जिसने जोड़ने का कार्य किया। समाज में जो जोड़ने का विचार करे वही राम का वैचारिक ईश्वर है। रामायण सुख संपादन करती है। यह तभी संभव है जब समन्वय होगा। दो मिनट का मौन शोक सभा में ही नहीं, श्लोक सभा में भी होना चाहिए। घर में भी शांति रखें। रामकथा प्र्रयोगशाला है। यहां इंसान में परिवर्तन आता है। यह जोड़ने का साधन है। समन्वय हुआ तो सोने तक पहुंच जाओगे। लंका सोने की थी। राम भी सेतु समन्वय से ही सोने की लंका पहुंचे। याद रखें समन्वय वो करता है जिसके ह्रदय में हरि हो। जो ऊंच-नीच, अमीर-गरीब का भेद नहीं करता। बापू ने संदेश दिया कि अंधविश्वास से डरें नहीं। हरिनाम लें, हर शगुन सही होगा। रामचरितमानस से समाज का रावण मरेगा।


बापू ने प्रवाही परंपरा का निर्वहन करते हुए सबके मंगल की कामना की। मानस परिक्रमा कथा भगवान गोवर्धननाथ के चरणों को समर्पित की। जिन चार पंक्तियों के साथ कथा प्रारंभ की थी उन्हीं पंक्तियों को गाकर कथा को विराम दिया। जय श्री राम और हर-हर महादेव का जयघोष हुआ। व्यासपीठ से बापू ने सभी को हाथ जोड़कर कृतज्ञता प्रकट की। कथा में सांसद व अभिनेत्री हेमा मालिनी, संत कृपा सनातन संस्थान के अध्यक्ष मदन पालीवाल, महामंडलेश्वर गुरुशरणानंद महाराज सहित संत-महापुरूष व देशभर से आए हजारों श्रोता शामिल हुए। -सुमित सारस्वत, मो.9462737273


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November 18, 2017

भारत की मानुषी छिल्लर के सिर सजा मिस वर्ल्ड 2017 का ताज | Miss World 2017 Manushi Chhillar

17 साल बाद एक बार फिर विश्व सुंदरी का ताज भारत की बेटी के सिर पर सजा है. भारत की मानुषी छिल्लर ने मिस वर्ल्ड 2017 का प्रतिष्ठित ताज अपने नाम कर लिया है. उनसे पहले ये खिताब 17 साल पहले 2000 में प्रियंका चोपड़ा ने जीता था. छिल्लर ने चीन के सान्या शहर एरीना में आयोजित समारोह में दुनिया के विभिन्न हिस्सों से 108 सुंदरियों को पछाड़ कर यह खिताब अपने नाम किया है.

मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से मानुषी के विजेता बनने की घोषणा की गई. ट्वीट में कहा गया है, ‘‘मिस इंडिया वर्ल्ड की विजेता, मिस इंडिया मानुषी छिल्लर हैं.’’ मानुषी इंग्लैंड, फ्रांस, कीनिया और मैक्सिको की प्रतिभागियों के साथ आखिरी पांच दावेदारों में शामिल हुईं. प्रतियोगिता में दूसरे स्थान पर मिस इंग्लैंड स्टेफनी हिल और तीसरे स्थान पर मिस मैक्सिको आंद्रिया मेजा रहीं. पिछले साल की मिस वर्ल्ड स्टीफेनी डेल वेले ने मानुषी को ताज पहनाया.


शीर्ष पांच प्रतिभागियों में जगह बनाने के बाद मानुषी से सवाल किया गया कि उनके मुताबिक कौन सा पेशा सर्वाधिक वेतन का हकदार है? उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि मां सबसे ज्यादा सम्मान की हकदार है और जब आप वेतन की बात करते हैं तो यह सिर्फ नकदी नहीं है बल्कि मेरा मानना है कि यह प्रेम और सम्मान है जो आप किसी को देते हैं. मेरी मां मेरी जिंदगी में सबसे बड़ी प्रेरणा रही हैं.’’ मानुषी ने कहा, ‘‘सभी मांएं अपने बच्चों के बहुत कुछ त्याग करती हैं. इसलिए मुझे लगता है कि मां का काम सबसे अधिक वेतन का हकदार है.’’ इससे पहले साल 2000 में प्रियंका चोपड़ा मिस वर्ल्ड बनीं थीं. वर्ष 1999 में यह खिताब भारतीय सुंदरी युक्ता मुखी के नाम हुआ था.


साल 1997 में डायना हेडन और 1994 में ऐश्वर्या राय मिस वर्ल्ड बनीं थी. मिस वर्ल्ड बनने वाली पहली भारतीय सुंदरी रीटा फारिया हैं जिन्होंने 1966 में यह खिताब अपने नाम किया था. मिस वर्ल्ड की वेबसाइट पर मौजूद मानुषी के प्रोफाइल के अनुसार हृदय रोग सर्जन बनना चाहती हैं और ग्रामीण इलाकों में बहुत सारे गैर लाभकारी अस्पताल खोलना चाहती हैं.

वह प्रशिक्षित शास्त्रीय नृत्यांग्ना हैं. उनको खेल-कूद में काफी दिलचस्पी है. स्केचिंग और पेटिंग भी उन्हें पसंद है. वेबसासइट पर निजी जिंदगी का उनका मकसद के बारे में लिखा गया है, ‘‘जब आप सपना देखना बंद कर देते हैं तो जीना बंद कर देते हैं और अपने सपनों में उड़ान भरने का हौसला खो देते हैं. खुद पर भरोसे की क्षमता आपकी जिंदगी को जीने लायक बनाती है.’’
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तुमने बुलाया और हम चले आए.. सीएम से मिले नेता

गत विधानसभा चुनाव में भाजपा से बगावत करने पर पार्टी से निष्कासित किए गए ब्यावर के पूर्व विधायक देवीशंकर भूतड़ा व मसूदा के पूर्व देहात जिलाध्यक्ष नवीन शर्मा ने पुनः घर वापसी के बाद सूबे की मुखिया के दरबार में हाजरी लगाई। शनिवार को दोनों नेता मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का आभार प्रकट करने राजधानी जयपुर पहुंचे। यहां सीएम आवास पर राजे से भेंट कर पार्टी में पुनः शामिल किए जाने पर आभार प्रकट किया। शर्मा ने काजूकतली और भूतड़ा ने ब्यावर की प्रसिद्ध तिलपट्टी खिलाकर मैडम का मुंह मीठा करवाया।

यह भी पढ़ें : हाथ तो मिले मगर दिल नहीं

मुलाकात के दौरान सीएम ने पूछा, इतने दिन कहां गायब थे दोनों? इस पर भूतड़ा ने कहा कि पहले आपने याद ही नहीं किया। आपने बुलाया और हम चले आए। मैडम ने शर्मा से पूछा कि मैं बिजयनगर आई तब कहां थे? अब दोनों मिलकर अजमेर उपचुनाव की तैयारियों में जुट जाओ। दिल लगाकर पार्टी का काम करो। जयपुर में दोनों नेताओं ने पार्टी प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी, मंत्री अरुण चतुर्वेदी, श्रीचंद कृपलानी व अन्य से भी मुलाकात की। गौरतलब है कि आगामी उपचुनाव के मद्देनजर गत मंगलवार को इन दोनों नेताओं को पार्टी की मुख्यधारा में पुन: शामिल किया गया था। -सुमित सारस्वत, मो.9462737273


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5 हजार साल बाद कृष्ण को याद कर जन्म भूमि मथुरा में रोई हजारों आंखें

भगवान राम की पावन कथा ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा करते हुए शनिवार को कृष्ण जन्म भूमि मथुरा पहुंची। यहां मोरारी बापू ने सत्य, प्रेम, करूणा को केंद्र में रखते हुए मानस परिक्रमा कथा कही। उन्होंने कहा कि भरत प्रेम, राम सत्य व शिव करूणा है। प्रेम रूपी भरत ने सत्य रूपी राम की परिक्रमा की। सत्य रूपी राम ने करूणा रूपी शिव की परिक्रमा लगाई। करूणा रूपी शिव प्रेम रूपी भरत की परिक्रमा करते हैं।
बापू ने कहा कि प्रेम बेकसूर है। प्रेत रत्न है। प्रेम परमात्मा है। जीवन में सत्य और करूणा भले ही न हो मगर अवश्य प्रेम होना चाहिए। मासूम गाजियाबादी का शेर ‘आवाज जबकि हमने उसे बार-बार दी, नादान है कश्ती फिर भी भंवर में उतार दी..’ सुनाकर प्रेम की पराकाष्ठा बयां की। ओशो का जिक्र करते हुए प्रेम का संदेश दिया।

कथा में कृष्ण और नंदबाबा का संवाद बापू ने भावुकता भरते शब्दों में सुनाया। उन्होंने कहा, कृष्ण को गए पांच हजार साल हो गए मगर उनकी स्मृति आज भी जवान हो रही है। प्रसंग सुनाते-सुनते पूरा वातावरण भावुक हो गया। कृष्ण विरह को याद करते हुए बापू की आंखों से अनवरत अश्रुधारा बह रही थी। कृष्ण प्रेम में डूबी हजारों श्रोताओं की आंखें भी रो रही थी। लो आ गई उनकी याद, वो नहीं आए.. गीत के जरिए प्रभु को याद करते हुए बापू ने कहा कि स्मृति सदैव अमर रहनी चाहिए। स्मृति बरकरार रखने के लिए सदैव हरिनाम संकीर्तन करें। नानकदेवजी ने भी कहा है, सिमरन कर ले मेरे मना। कथा में काशी नरेश डॉ. अनंत नारायण सिंह व संत संतोष दास सतुआ बाबा सहित संत-महापुरूष व देशभर से आए हजारों श्रोता शामिल हुए। -सुमित सारस्वत, मो.9462737273


तीन वस्तु की परिक्रमा कभी ना करें
बापू ने बताया कि इंसान को तीन वस्तु की परिक्रमा कभी नहीं करनी चाहिए। पहला मोह, विनय पत्रिका में गोस्वामी तुलसीदासजी ने लिखा है कि रावण ने मोह को केंद्र में रखा जो विनाश का कारण बना। दूसरा अहंकार, जो कुंभकर्ण में था। तीसरा काम, जो रावण पुत्र इंद्रजीत में भरा था।

गोवर्धन को लगाया छप्पन भोग
मानस परिक्रमा कथा के विराम से पूर्व भगवान गोवर्धननाथ को छप्पन भोग लगाया गया। बापू सहित देशभर से आए भक्तों ने भोग दर्शन कर धर्मलाभ लिया। रविवार को कथा गोवर्धन में विराम लेगी। कथा का समय प्रातः 9 बजे से दोपहर 12.30 बजे तक रहेगा। कथा के पश्चात सभी भक्तों को छप्पन भोग प्रसाद रूप में वितरित किया जाएगा।

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November 17, 2017

ठाकुर हमरे रमण बिहारी, हम हैं रमण बिहारी के.. | Morari Bapu in Gokul

दिव्य और सेव्य कोई भी परम चेतना को केंद्र में रखकर गुणातीत श्रद्धा भाव से की गई यात्रा परिक्रमा है। हनुमानजी ने लंका में कई मंदिरों की परिक्रमा की, परमतत्व सीता मां की खोज में। परिक्रमा का परिणाम प्यारा होता है। पादुका की परिक्रमा शरणागति को दृढ़ करती है। ग्रंथ परिक्रमा से ग्रंथियों की मुक्ति होती है। पेड़-पौधों की परिक्रमा दूसरों को फल व छाया देने की प्रेरणा देती है। सूर्य की परिक्रमा प्रकाश की सीख देती है। गगन की परिक्रमा विशालता का बोध प्रदान करती है। मूर्ति या मंदिर की परिक्रमा अंतरतम का भाव प्रदान करती है। पहाड़ की परिक्रमा अचलता का बोध देती है। विवाह अग्नि की परिक्रमा पावन करती है। चिता अग्नि की परिक्रमा विवेक व ज्ञान प्रदान करती है। यह गूढ़ रहस्य संत मोरारी बापू ने शुक्रवार को रमणरेती (गोकुल) में मानस परिक्रमा कथा के सातवें दिन बताए।
ब्रज चौरासी कोस में 801वीं रामकथा में बापू ने कहा कि कलयुग समान कोई युग नहीं है। भारत में जन्म लेना पुण्य है। आंसू और आश्रय भक्ति की बहुत बड़ी संपदा है। ‘मैं हूं एक फूल मुझे शाख से ना तोड़ा जाए, मैं जैसा भी हूं मेरे हाल पे छोड़ा जाए..’ शेर सुनाते हुए संदेश दिया कि किसी भक्त की आलोचना न करें। भक्त भगवान की याद में आंसू बहाए या नाचे तो उसकी मजाक ना बनाएं, यह भक्त अपराध है। उन्होंने कहा कि गोकुल तपस्या, भजन, भाव और साक्षात्कार की भूमि है। यहां प्रभु ने कई लीलाएं की है। यहां आनंद आता है। बापू ने ठाकुर के प्रति प्रेम प्रकट करते हुए ‘ठाकुर हमरे रमण बिहारी, हम हैं रमण बिहारी के..’ भजन सुनाया। -सुमित सारस्वत, मो.9462737273


नारी को उद्धार का अधिकार
बापू ने अहिल्या प्रसंग सुनाते हुए नारी सशक्तिकरण का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि नारी को भी उद्धार का अधिकार है। भगवान राम ने अहिल्या का उद्धार किया। आज समाज में उच्चारक, विचारक, सुधारक तो है मगर स्वीकारक नहीं। भगवान राम स्वीकारक है इसलिए गांव-गांव में उनकी पूजा होती है। राम ने शबरी, अहिल्या जैसी कई नारियों का उद्धार किया। गुरु विश्वामित्र से संवाद करते हुए राम ने कहा, एक भक्त ने मुझे पत्थर से प्रकट किया था नृसिंह रूप में, आज मेरा कर्त्तव्य है कि मैं पत्थर से भक्त को प्रकट करूं अहिल्या रूप में। अवध में कौशल्या ने राम को प्रकट किया और वन में राम ने अहिल्या को प्रकट किया। महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या विश्व की सुंदर रचना थी। इंद्र ने उनका शीलहरण किया तो गौतम उन्हें छोड़कर चले गए। गुरु विश्वामित्र ने अहिल्या को बेटी की तरह सम्मान व स्नेह देते हुए गौतम से मिलवाया। बापू ने समाज में हो रहे महिला शोषण पर चिंता जताते हुए कहा कि आज भी समाज के इंद्र महिलाओं का शोषण कर छोड़ देते हैं। आजीविका का इंतजाम भी नहीं करते। यह दर्द बयां करते हुए उन्होंने ‘बनके पत्थर हम पड़े थे सूनी-सूनी राह में..’ गीत सुनाया।


आज नहीं तो कल होगा
बापू ने कहा कि राम नाम चेतन है। पदार्थ व जड़ को पाने के लिए पुरूषार्थ करना पड़ता है और चेतन को पाने के लिए पुकार करनी होती है। परमात्मा को पाना है तो प्रतिदिन नाम सुमिरन करें। कभी अहंकार न करें। कोई प्रशंसा करे तो मान शून्यता रखें। जीवन में निराशा न आने दें। सदैव आशावादी बने रहें। आज नहीं तो कल परमात्मा अवश्य मिलेंगे।

महामंत्र है राम नाम
दशरथ पुत्रों का नामकरण संस्कार प्रसंग सुनाते हुए कहा कि राम नाम महामंत्र है। जिसके नाम से विश्राम मिले वो राम है। भरत दूसरों के पोषण का संदेश देता है। किसी का शोषण न करें। शत्रुघ्न कहता है किसी से शत्रुता न रखें। दुश्मनी खत्म हो। लक्ष्मण का अर्थ आधार है। जीव का आधार बनें। कमाई का दसवां हिस्सा दान करें। माता-पिता व गुरुजन का अभिवादन करें। इससे आयु, विद्या, बल व कीर्ति बढ़ेगी।

मथुरा में होगा छप्पन भोग मनोरथ
मानस परिक्रमा कथा शनिवार को मथुरा में होगी। यहां छप्पन भोग मनोरथ होगा। कथा विराम से पूर्व गोवर्धननाथजी को छप्पन भोग लगाया जाएगा। रविवार को यह भोग सभी भक्तों को प्रसाद रूप में वितरित किया जाएगा।
नया भजन सुनें : तेरे बिना में रोई मोहन

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रानी पद्मावती ने खत में लिखा दर्द | Letter of Rani Padmavati

प्रिय विजय
तुम्हारे पत्र ने चित्तौड़गढ़ की स्वर्णिम स्मृतियों को ताजा कर दिया। वे स्मृतियां जो उस मनहूस दिन राख में बदल गईं थीं। चित्तौड़ के अासमान पर उस दिन सूरज रोज की तरह चमक रहा था। मगर हमारे जीवन में एक गहरी अमावस सामने तय थी। राजपूतों की पीढ़ियों की प्रतिष्ठा दाव पर थी। रनिवास में हम सबके चेहरों का रंग उड़ा हुआ था। ऐसा खौफ इसके पहले कभी महसूस नहीं हुआ था। हमारे पुरुष वीर थे। वे वीरों की तरह ही अपने भाल पर तिलक लगाकर युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। हमने अपने दुश्मन पर भी विश्वास किया। कोई छलकपट, धोखा नहीं किया। यही हमारा संस्कार था। शायद यही हमारी कमजोरी थी। आखिरकार हम अपने ईश्वर का स्मरण करते हुए कतार से अग्निकुंड में जाकर अपनों से और अपनी जिंदगी से विदा हुए थे। वह शारीरिक पीड़ा तो पल पर की थी। लपटों में जाकर प्राण पखेरू कुछ ही क्षणों में उड़ गए थे। देह कुछ देर में भस्म हो गई थी। मगर जिंदा रहते बेबसी के वे आखिरी पल पराजय और अपमान की भयावह मानसिक पीड़ा के थे। वह टीस देहमुक्त होने के सात सौ साल बाद भी कम नहीं हुई।
चित्तौड़ को राख में से फिर उठ खड़ा होने में ज्यादा समय नहीं लगा होगा। मगर तब हम नहीं थे। हम चित्तौड़ की यादों का हिस्सा हो गए। चंदेरी की रानी मणिमाला और रायसेन की रानी दुर्गावती के सामूहिक आत्मदाह के बारे में आपने लिखा है। आप इतिहास की किताबें खंगालेंगे तो पता चलेगा कि चित्तौड़ की हैसियत तब आज की दिल्ली जैसी थी। कई राजपूत राजघरानों का शक्तिकेंद्र चित्तौड़ ही था। राणा कुंभा, राणा सांगा और महाराणा प्रताप ने मेवाड़ को शक्तिशाली बनाया था। तब हमारे बहुत गहरे रिश्ते रायसेन, चंदेरी और मांडू के राजाओं से थे। हम जानते हैं कि बाद की सदियों में मणिमाला और दुर्गावती के साथ भी सैकड़ों राजपूत औरतें जौहर के अग्निकुंडों में उतरकर हमारे पास आती रहीं। सुनाने के बाद सबके पास एक जैसी कहानियां थीं। राजपूत राजघरानों की वे रानियां भी अंतत: यहीं आईं, जो तुगलकों और मुगलों के हरम में गई थीं और उनके बच्चे हुए थे, जिनमें से कई सुलतान और बादशाह भी बने। मेरे समय खिलजी था। बाद में नाम बदलते गए। जौहर की आग बुझी नहीं। वह किलों में भी धधकती रही और दिलों में भी! यह सदियों से आ रहे रुलाने वाले समाचारों की ऐसी श्रृंखला है, जिसने हमारी आत्मा को भी इस लायक नहीं छोड़ा कि हम दूसरी देह धारण करके फिर लौटने का साहस करते।


आपने देश के तीन टुकड़ों में बंटने के बारे में भी लिखा। इसका पता हमें तभी हो गया था। पाकिस्तान नाम के टुकड़े में, जो लोग हमारे जैसी ही मौत मरने के लिए मजबूर हुए, उन औरतों-बच्चों के भी कई काफिले यहां आए। कोई कुएं में कूद कर मरा था। कोई तलवारों से काटा गया। कोई जीते-जी शोलों में बदल दिया गया। लाशों से भरी ट्रेनें। कई औरतें, जो लूट के माल की तरह उठा ली गईं थीं, वे एक लंबी यातना भरी जिंदगी जीने के बाद कहीं गुमनाम अंधेरी कब्रों में जा सोईं। वे न इज्जत से जी सकीं, न मर सकीं। उनकी रूह कंपाने वाली कहानियां हमने यहां सुनीं।
तुमने एकदम सच कहा। भारत से हमारा परिचय तथागत गौतम बुद्ध से ही था। श्रीलंका में बुद्ध का विचार भारत से ही आया था। हमारी कल्पना थी कि जहां कभी बुद्ध हुए, वहां हर तरफ शांति होगी, विपस्सना के अनुभव होंगे। जीवन अपने सुंदरतम रूपाें और कलाओं में विकसित हो रहा होगा। निस्संदेह यह धरती का ऐसा टुकड़ा होगा, जिसके पास दुनिया को बताने के लिए काफी कुछ शुभ समाचार होंगे। अजंता-एलोरा, सांची-सारनाथ, नालंदा-विक्रमशिला में बुद्ध का विचार कितने रूपों में खिला, इसे शब्दों में व्यक्त करना असंभव है। मगर क्या भारत ने कभी कल्पना की थी कि उसकी समृद्धि किन बेरहम बहेलियों को सदियों तक हमलों और कब्जों के लिए एक खुला निमत्रंण हो सकती है? क्या भारत ने कभी सोचा था कि उसे किन ताकतों से टकराना होगा? किस-किस तरह के बर्बर काफिले भारत का शिकार करने आने वाले हैं? वे किस तरह की कभी न खत्म होने वाली लड़ाइयों में भारत को कोने-कोने में धकेल देंगे और कब्जे कर-करके एक नई पहचान कायम करने की निर्लज्ज कोशिशें करते रहेंगे? किस तरह हमारे ही लोग उस नई पहचान में अपनी जड़ों को भुलाकर गाफिल हो जाएंगे?
दुनिया के इतिहास में यह बहुत ही दर्दनाक अनुभव हैं, जो भारत के हिस्से में आए। भारत धरती का एक और बेजान टुकड़ा भर नहीं था। सदियों की विकास यात्रा में इस देश ने संसार को कई कमाल की चीजें दी थीं। यहां का धर्म इस निष्कर्ष पर पहुंचा था कि अंतत: समस्त प्रकार की हिंसाओं से मुक्त होकर सच्ची मानवता के लिए खुले दिल और दिमाग से ही कुछ श्रेष्ठ हो सकता है। इसलिए हमने महाविनाश के महाभारत भी भुगते, किंतु एक समय बुद्ध की शांति को ही शिरोधार्य किया।
मैं पूछना चाहती हूं कि क्या भारत ने आज भी कभी इनके बारे में ठीक से सोचा है? मैं चाहती हूं कि हम एक बार तो सच का सामना करें। यह हमारा साझा सच है। इसमें कोई बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक नहीं है। तुमसे सहमत हूं कि हम ही बहुसंख्यक हैं। हम ही अल्पसंख्यक हैं। मैं सात सदियों के इस पार से बहुत साफ देख सकती हूं कि हम सब एक ही हैं। सरहदों के इस तरफ भी हम हैं, उस पार भी हम हैं। मंदिरों में स्तुति भी हम कर रहे हैं, मंदिर के विरोध में भी हम ही हैं और हमें अहसास भी नहीं। रावलपिंडी के पास तक्षशिला किसने बनाया था? अफगानिस्तान में बामियान के बुद्ध किसने गढ़े थे? शैव और बौद्ध परंपराओं का केंद्र रहे कश्मीर में हम ही हम पर पत्थर फैंक रहे हैं। हम ही हमारे पीछे बम-बारूद लिए पड़े हैं। जो जबरन थोपी गई नई पहचानों में गाफिल हैं, वे भी उन आंधियों में उड़े हुए तिनके ही हैं, जो सदियों तक देश के हर हिस्से में हमें भुलाती-भटकाती रहीं। मैं तो उस अपवित्र आंधी से सीधी टकराने वाली बेबस सदियों की एक अभागी किरदार भर हूं।


खिलजी से चित्तौड़ का सामना कोई नई घटना नहीं थी। उसके पहले जलालुद्दीन खिलजी ने भी रणथंभौर को जमकर लूटा और बरबाद किया था। और पहले बिहार-बंगाल में भी नालंदा और विक्रमशिला आग के हवाले किए गए थे। ये कारनामे भी किसी बख्तियार खिलजी ने ही किए थे। गजनी से आए किसी बेरहम मेहमूद ने तो 17 बार भारत को रौंदा था। हम सोमनाथ के किस्से सुनते थे तो डर से ज्यादा आश्चर्य होता था। लूटकर हमारे देवालयों को तोड़ गिराने का मतलब हम कभी नहीं समझे और कई जगह उन्हीं मंदिरों के मलबे से नई इमारतें बनाना तो बिल्कुल ही समझ के परे था। अजयमेरू यानी आज का अजमेर तो हमसे ज्यादा दूर नहीं था। वहां जिसे आप अढाई दिन का झोपड़ा कहते हैं, जरा उन पत्थरों को आंख खोलकर और दिल थामकर देखिए। वे जख्मों की कौन सी कहानी सुना रहे हैं?
सच बात तो ये है कि तब पूरा देश ही मलबे में बदल रहा था। देश हर जगह एक नई और डरावनी शक्ल ले रहा था। चारों तरफ से व्यापारी समूह और राजदूत उस समय के भारत में चल रही लूट और हमलों की कहानियां चित्तौड़ में भी आकर सुनाया करते थे। चित्तौड़ के किले पर खड़े होकर तब हम चर्चाएं किया करते थे कि कोई शासक ऐसा कैसे कर सकता है कि देवताओं की मूर्तियों को तोड़कर मांस तौलने के लिए कसाइयों को दे दे या किसी मस्जिद की सीढ़ियों पर चुनवा दे ताकि वह लोगों के पैरों तले रौंदी जाए? कौन सा धर्म इसकी इजाजत देता है? सत्तर साल पहले एक नया शब्द भारत से सुनने में आया-सेकुलर। मगर हम इसका मतलब नहीं समझे और जो खबरें अब आती हैं तो लगता है कि मेरे भारत को ये क्या हो गया? भारत अपनी चमकदार लेकिन गुमशुदा याददाश्त के साथ किस दिशा में कूच कर गया?
अरे हां, किन्हीं संजयलीला भंसाली का जिक्र तुमने किया है। मुझे अच्छा लग रहा है कि वे कोई फिल्म मुझ पर बना रहे हैं। तुम देखो तो बताना कि पद्मिनी की कहानी को कैसे दिखाया? मुझे विश्वास ही नहीं है कि हमारे दौर की त्रासदियों को कोई जस का तस दिखा सकता है। उसे सब्र से देखने और देखकर शांत रहने के लिए भी बड़ा कलेजा चाहिए। कभी सोचना, आपके घर के चारों तरफ भूखे भेड़ियों जैसे नाममात्र के इंसानों की शोरगुल मचाती पागल भीड़ हाथों में तलवारें चमकाती हुई घेरकर खड़ी हो। वे कभी भी दरवाजा तोड़कर आपके घर में दाखिल हो सकते हों। कोई बचाने वाला न हो। आपकी ताकत लगातार घट रही हो। दाना-पानी बाहर से सब रोक दिया गया हो। आप कब तक टिकेंगे और जब वे भीतर दाखिल होंगे तो क्या होगा? जो होता था, हमने उसके भी खूब किस्से सुने हुए थे। इसलिए हम यह कठोर फैसला कर पाए कि इज्जत की मौत ही ठीक है। भंसाली साहब के लिए यही कहूंगी कि सिर्फ मुनाफे के लिए इतिहास से न खेलें। हम पर जो गुजरी, उसका सौदा न करें। अपनी दादी, नानी, मां, बहन, पत्नी और प्रेयसी में पद्मिनी को देखें। फिर तय करें कि क्या दिखाना है, क्यों दिखाना है?


विजय, तुमने पत्र लिखा। मुझे मेरे आहत अतीत की स्मृतियों में ले जाने के लिए धन्यवाद। अब संपर्क में बने रहना। जो जुल्मों की दास्तान सुनाने के लिए भारत में नहीं बच नहीं सके, वे सब यहां आए। मेरे पास बहुत कुछ है बताने को। भूलना मत। फिर कुछ लिख भेजना। पद्मिनी को भूलने का मतलब इतिहास को भूलना होगा!
-तुम्हारी पद्मिनी


(वरिष्ठ पत्रकार श्री विजय मनोहर तिवारी जी के फेसबुक पेज से साभार)
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सात सौ साल बाद रानी पद्मावती को लिखा पहला पत्र | First Letter to Rani Padmavati

प्रिय पद्मावती,
सादर प्रणाम। संभवत: सात सौ साल बाद ये पहला ही पत्र है, जो किसी ने आपको लिखा होगा। संजय लीला भंसाली नाम के एक कारीगर हैं। वे फिल्में बनाते हैं। इतिहास के किरदारों पर उम्दा फिल्में बनाई हैं। इस बार आप पर उनकी फिल्म आने वाली है। इसके बहाने आप बहस का विषय बन गई हैं। दो बातें आपसे करने का मन हुआ। कभी सोचता हूं कि जब आप श्रीलंका से चित्तौड़ आईं होंगी तो भारत के बारे में क्या सपने आपकी आंखों में रहे होंगे। भारत का परिचय आपको गौतम बुद्ध से ही रहा होगा। समृद्धि और शांति का मुल्क, जहां से तथागत का विचार आज से 23 सौ साल पहले महेंद्र और संघमित्रा श्रीलंका लेकर गए थे। वे मगध सम्राट अशोक की संतान थे। मगर जब आपने चित्तौड़ का रुख किया तब तक महेंद्र-संघमित्रा की कहानी 16 सौ साल पुरानी हो चुकी थी। यहां छह सौ साल से कुछ और ही पक रहा था, जिसकी लपट आपके ही सामने चित्तौड़ को छूने वाली थी। जीते-जी जलती आग में अपने ऐसे अंत के बारे में आपने शायद ही कभी सोचा होगा!
आपके आने के सौ साल पहले ही चित्तौड़गढ़ से 500 किलोमीटर के फासले पर तब दिल्ली हैवानियत का ज्वालामुखी बन चुकी थी, जिसका लावा पूरे भारत को अपनी चपेट में ले रहा था। भारत वीरों की भूमि ही थी मगर वे ऐसे जाहिल युद्ध के आदी नहीं थे, जिसमें कोई नियम-कायदे नहीं थे। धोखा, छलकपट, बेरहमी ही जिनके उसूल थे। अरब की रेतीली हवाओं में पला एक कबीलाई विचार जहां से गुजरा था, उसने सब कुछ जलाकर राख कर डाला था। आपके समय चित्तौड़ का सामना जिस खिलजी से हुआ, वह उसी खूनी जोश से भरा हुआ था। तब तक दिल्ली पर कब्जा हुए सौ साल हो चुके थे। खिलजी को खेलने के लिए खुदा ने बीस साल दिए। 1296 से 1316 के बीच ये बीस साल भारत की बदकिस्मती के भी बीस साल थे।


हमें सत्तर साल पहले की बातें भी याद नहीं रहतीं। आपके और हमारे बीच तो 714 साल का फासला है। हम भारतीय भूलने में माहिर हैं। यूं दुनिया-जहां की जानकारियां होंगी मगर हमें अपने आसपास के इतिहास का कोई पता ही नहीं है। इतिहास के नाम पर अजीब किस्म की बेखबरी है या दूसरों के सुनाए कुछ किस्से-कहानियां हैं बस। वो भी सबके अपने नजरिए के हिसाब से। यहां इतिहास को तोड़मोड़ कर अपनी मनमर्जी लायक बनाकर परोसने की पूरी आजादी रही है। वैसे आपसे बेहतर कौन बता सकता है कि अतीत में याद रखने लायक बचा ही क्या था हमारे पास? कब्जा, कत्लेआम, लूटमार यही था।
आपने 1299 में राजस्थान के ही रणथंभौर में हुए अलाउद्दीन के हमले और औरतों के जौहर के किस्से सुने होंगे। पता नहीं आपके दिल पर तब क्या बीत रही होगी! चित्तौड़गढ़ में उस दिन आपने अपने जीवन का सबसे कठिन फैसला लिया और अपनी अनेक सखियों के साथ चिता की आग की तरफ कदम बढ़ाए। चंद घंटों में सब तबाह हो गया था। आप एक आंसू बनकर भारत की आंख से लुढ़क गईं। उन हालातों में उस धधकती आग में औरतों की सामूहिक आत्महत्याओं को आज हम जौहर के नाम से जानते हैं। आपका जौहर अंतिम नहीं था। चित्तौड़ में ही अगले ढाई सौ साल में और जौहर हुए। हर बार किसी सुलतान या बादशाह के हमले के बाद हारने के हालात में औरतों को अपनी इज्जत बचाने का यही एक रास्ता बचा था।
मध्यप्रदेश में चंदेरी और रायसेन के जौहर भी इतिहास में हैं। चंदेरी और रायसेन के रिश्ते चित्तौड़ राजघराने से तब बहुत गहरे थे। मेवाड़ ने तो अपनी घायल स्मृतियों में आपकी यादों को एक दीये की तरह जलाकर रखा, लेकिन यहां शायद ही किसी को याद हो कि पद्मावती की तरह चंदेरी में राजा मेदिनी राय की रानी मणिमाला और रायसेन के राजा सलहदी की रानी दुर्गावती ने भी अपने नाते-रिश्तेदारों, मंत्रियों, सेनापतियों की औरतों के साथ जौहर किए थे। आपको जानकर दुख होगा कि रायसेन की रानी दुर्गावती चित्तौड़गढ़ के ही राणा सांगा की बेटी थीं। चित्तौड़ से वे डोली में विदा हुई होंगी। मगर अपने सम्मान की खातिर जीते-जी सामूहिक चिता में उतर जाने की शक्ति उन्हें आपकी ही कहानी से मिली होगी! सांगा और बाबर के बीच की जंग में सलहदी भी सांगा की सेना में शामिल थे।
आपके बाद जैसे भारत राख और धुएं की एक भयावह कहानी है। कभी सोचता हूं कि उस क्षण चित्तौड़, चंदेरी या रायसेन के राजमहलों में क्या-कुछ घट रहा होगा, जब यह सूचना मिली होगी कि हम युद्ध हार गए हैं। कभी भी अलाउद्दीन, बाबर या सूरी की फौजें किले में दाखिल हो सकती हैं। महलों में मातम छा गया होगा। जैसे दिवाली के सारे दीये अचानक बुझ जाएं। जान बचाने के लिए आप इंतजार कर सकती थीं। होता क्या? अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ को बेरहमी से लूटता और महीनों की मशक्कत से हासिल इस फतह की पूरी कीमत वसूलता। बेशक इस लूट में आप और बाकी सारी औरतें-बच्चियां भी शुमार होतीं। आपके साथ जितनी भी औरतें उस दिन चित्तौड़ में रही होंगी, वे सब खिलजी के फौजियों में बांट दी जातीं। चित्तौड़ के महल से निकालकर आप सबको सामान की तरह ढोकर दिल्ली ले जाया जाता। दिल्ली के अपने महलों में आप माले-गनीमत की नुमाइश में पेश की जातीं।


आखिरकार खिलजी के हरम में आप बाकी जिंदगी, अपने जैसी ही दूसरी सैकड़ों औरतों के साथ गुजारतीं, जो ऐसी ही लूट में भारत के कोने-कोने से लाई गईं थीं। आपकी मुलाकात गुजरात के राजा करण की रानी कमलादी से भी होती और आप कमलादी की बेटी देवलरानी को भी देखतीं। पता नहीं आपको कैसा लगता यह देखकर कि अलाउद्दीन ने कमलादी को खुद रखा और उसकी बेटी देवलरानी का निकाह अपने बेटे खिज्र खां से करा दिया। बची हुई जिंदगी में अपनी आन-बान और शान के मिट्‌टी में मिलने तक की कहानियां आप एक दूसरे को सुनातीं, कुछ बच्चे पैदा होते और एक दिन किसी अंधेरी कब्र में जाकर दफन हो जातीं। कमलादी और देवलदेवी के बारे में किसी को कुछ नहीं मालूम। तो किसे पता चलता कि पद्मावती कहां गईं, उसका क्या हुआ? पद्मावती इतिहास के अंधेरे में खो गई होती। मगर ऐसा नहीं हुआ। खिलजी की फतहें इतिहास में दर्ज हैं मगर सात सदियों के पार पद्मावती भी आंखों में झिलमिलाती है।
चित्तौड़ की आग में भस्म होने के साथ ही आसमान पर गाढ़े धुएं की काली परत छा गई थी। आप चित्तौड़ के आसमान से भारत के दामन में गिरा एक आंसू हैं। सात सौ साल बाद वो आंसू कई सवालों के साथ सामने है। मगर हम सवालों से बचने वाले लोग हैं। फिर एक अकेला पद्मावती का ही प्रश्न होता तो निपट भी लेते। देश का दामन ऐसे अनगिनत आंसुओं से भरा है। आपके साथ जलकर मरीं कितनी औरतों के नाम हमें याद हैं? मणिमाला और दुर्गावती के साथ सामूहिक आत्महत्याएं करने वालीं कितनी औरतों के नाम किसे पता हैं? और उन औरतें के बारे में क्या, जो आपकी तरह जौहर के फैसले नहीं कर सकीं और अपना सब कुछ बरबाद होने के बाद लूट के माल में शामिल होकर सुलतानों-बादशाहों के हरम में समाती रहीं? यह इतिहास से गिरते आंसुओं की अंतहीन झड़ी है, जिस पर किसी भी इज्जतदार कौम को पश्चाताप और शर्म से भरा होना चाहिए। आपको याद करते हुए मेरा सिर शर्म से झुका है। दिल दर्द से भरा है। दिमाग बेचैन है। आप इतिहास का मरा हुआ हिस्सा नहीं हैं। अाप जीवित स्मृति हैं। आप हमारी आंखों की नमी में हैं।
अलाउद्दीन खिलजी हो, तुगलक हो, तैमूर हो, बाबर हो, औरंगजेब हो या नादिर शाह। तवारीख में इन सबने खुद को इस्लाम का अनुयायी होने का दावा बड़े जोर से कराया है। मैं नहीं मानता कि ये मामूली मुसलमान भी थे, क्योंकि मुझे तो यह बताया जाता है कि इस्लाम का मतलब ही है-शांति! अमन का संदेश देने वाले मजहब में ऐसे क्रूर किरदार, जो जिंदगी भर कत्लेआम, लूटमार करते रहे और काफिरों के कटे हुए सिरों की मीनारें बनवाकर गाजी का तमगा टांगते रहे। ये कम्बख्त कैसे मुसलमान हो सकते हैं? ये भारत के इतिहास के सबसे बड़े गुनहगार हैं।
मुझे नहीं पता संजय लीला भंसाली के सिनेमा में क्या है? मगर मैं जानता हूं कि आज किसी की हिम्मत नहीं कि सच को सच की तरह दिखा दे। कुछ मुस्लिम संगठनों ने भी भंसाली की फिल्म का विरोध किया है। उनकी दलील दिलचस्प है। वे फरमा रहे हैं कि पद्मावती में मुसलमानों की छवि खराब की गई है। देखिए तो उन्हें अलाउद्दीन में एक मुसलमान दिखाई दे रहा है?
कभी सोचता हूं कि युद्ध हारने के बाद राजे-रजबाड़ों की जो काफिर औरतें इन सुलतानों-बादशाहों और उनके बाकी फौजियों के हिस्से में गई होंगी, उनकी औलादें और उन औलादों की औलादें आज कहां किस रूप में होंगी? वे जो जोर-जबर्दस्ती या लालच से धर्मांतरित हुए होंगे, उनके बच्चे और उनके बच्चों के बच्चे आज कहां और कैसे होंगे, क्या कर रहे होंगे? उनकी याददाश्त में क्या होगा? और आज जो हैं, वे कैसे महमूद, अलाउद्दीन, तुगलक, तैमूर, बाबर और औरंगेजब से अपना रिश्ता जोड़ सकते हैं। वे भी तो इनके पुरखों को दिए जख्मों के जीते-जागते, चलते-फिरते सबूत हैं। इस्लाम के नाम पर सदियों तक लूटमार और कत्लेआम करते रहे इन सुलतानों-बादशाहों से परेशान पुरखे हम सबके एक ही थे। जरूरत है कि ये अपनी याददाश्त पर जोर डालें। तारीख के पन्ने पलटें। अपने दानिशमंदों से मशविरा करें, सवाल पूछें-हम कौन हैं, हमारे पुरखे कौन थे? वे जो यहां हमले करने आए या वे जिन पर हमले हुए और मरते-कटते रहे, जलील होते रहे। अपनी जातीय स्मृति को जगाएं। सच का सामना करें!


अब कुछ नहीं हो सकता। आपके जौहर के बाद इस जमीन पर बहुत कुछ घटा है। यह देश तीन टुकड़ों में बटा है। आप आकर देखें तो हैरान होंगी। अब हम यहां बहुसंख्यक हैं। हम ही अल्पसंख्यक हैं। जबकि आपके समय तक हम काफी कुछ एक ही थे। मगर हमारी याददाश्त कमजोर हैं। हमें पता ही नहीं कि हमारी बेकसूर मां-बहनों के साथ क्या हुआ? कौन कहां से आया और हमारे साथ क्या खेल कर गया? हम जो बहुसंख्यक हैं, वे आपकी कहानी से आहत महसूस करते हैं। हम जो अल्पसंख्यक हैं, वे अलाउद्दीन को अपना समझते हैं। आशा है आप हमारी भूल को माफ करेंगी।
प्रिय पद्मावती हमें विश्वास है आप स्वर्ग में ही होंगी। आप धरती पर मत आइएगा। यहां कुछ भी नहीं बदला है। भारत में लौटकर आपको दुख ही होगा।
उत्तर की प्रतीक्षा है।

आपका ही-

विजय मनोहर तिवारी


(वरिष्ठ पत्रकार श्री विजय मनोहर तिवारी जी के फेसबुक पेज से साभार)
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November 16, 2017

ऐसा प्रेम होगा तो आपके घर भी प्रकटेंगे राम : मोरारी बापू | Morari Bapu in Mansarovar

ब्रज चौरासी कोस में मानस परिक्रमा कथा के छठे दिन मानसरोवर में भगवान राम का जन्म हुआ। कथावाचक मोरारी बापू ने राम जन्म प्रसंग सुनाते हुए दांपत्य को आनंदमय बनाने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि राम का अर्थ विश्राम, विराम व अभिराम है। पति पत्नी से प्रेम करे, पत्नी पति को आदर दे और दोनों मिल कर ठाकुर की सेवा करें तो घर अवध बन जाएगा। यह तीन सूत्रीय फॉर्मूला जहां अपनाया गया वहां राम का जन्म होगा। राजा दशरथ और कौशल्या में प्रेम के कारण भगवान राम प्रकट हुए।

बापू ने कहा कि रामकथा रसमयी व रहस्यमयी कथा है। परमात्मा आज भी लीला कर रहा है। परमात्मा की प्रतीक्षा करें, कृपा की नहीं। परमात्मा आएगा तो कृपा हो जाएगी। परिक्रमा के लिए जहां भी जाओ, परमात्मा साथ है। परिक्रमा प्रवाही परंपरा है। आदि काल में सूर्य से प्रारंभ हुई है। उन्होंने कहा कि जीवन रूपी रथ कृष्ण को सौंप दो। वो चलाएंगे तो मार्ग से नहीं भटकोगे। बीच-बीच में उपदेश देकर मार्गदर्शन भी करेंगे। अपनी लीलाओं से आनंद भी कराएंगे।

बापू ने कहा कि सत्य की राह पर विघ्न आते हैं। प्रेम में बाधा आएगी। करुणा की राह में प्रहार होंगे। भक्ति में विघ्न आना स्वाभाविक है। अगर भक्ति और प्रेम अहेतु है तो विघ्न कुछ नहीं कर पाएंगे। प्रेम निःस्वार्थ हो। इसमें सौदा नहीं होना चाहिए। परमात्मा मिले न मिले, परमात्मा का नाम हर वक्त साथ रखो। साधक को नियम का बंधन और प्रेम की स्वतंत्रता होनी चाहिए। सदा हंसते-मुस्कुराते प्रसन्न रहो। मैं रामकथा के माध्यम से प्रसन्नता बांट रहा हूं। कथा में ‘भये प्रकट कृपाला दीनदयाला..’ गाते हुए राम जन्म उत्सव मनाया गया। शुक्रवार को कथा रमणरेती (गोकुल) में होगी। -सुमित सारस्वत, मो.9462737273


मथुरा में कथाकारों से करेंगे मुलाकात
बापू ने ब्रज के सभी कथाकारों से मुलाकात की इच्छा जाहिर की है। कथा में मन का भाव बताते हुए कहा कि मैं ब्रज के सभी कथाकारों का दर्शन करना चाहता हूं। उनसे मुलाकात कर उनके साथ तस्वीर लेना चाहता हूं। दर्शन मुलाकात के लिए 18 तारीख की शाम सभी कथाकारों को व्यासपीठ से आमंत्रित किया है।
क्लिक करके देखिए : त्रिदेवी अवतार

Sumit Saraswat available on :
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November 15, 2017

परिक्रमा से होती है परम तत्व की प्राप्ति : मोरारी बापू | Morari Bapu in Akrur Ghat

ब्रज चौरासी कोस में मानस परिक्रमा कथा बुधवार को अक्रूर घाट पहुंची। यहां कथावाचक मोरारी बापू ने कहा कि परिक्रमा किसी की खोज में की जाती है। परिक्रमा से परम तत्व की प्राप्ति होती है। खुद की परिक्रमा करना आ जाए तो खुदा की परिक्रमा करने की जरूरत नहीं होती। निरंतर आत्म स्मरण से स्वयं की परिक्रमा संभव है। हरि नाम जाप करें। हम परमात्मा के ही अंश हैं। सदैव परमात्मा की स्मृति रखें। ओशो कहते हैं कि जहां से शुरू होते हैं वही हमारा आखरी लक्ष्य होता है मगर इसका पता लौटने पर ही लगता है। महाप्रभु ने हरि दर्शन के लिए पृथ्वी परिक्रमा की।


‘पहले सदके उतारे गए हैं, फिर हम मारे गए हैं’ शेर सुनाते हुए बापू ने कहा कि भक्ति में कई विघ्न आते हैं। विघ्न प्रसन्नता में वृद्धि करता है। विघ्न आए तो चिंतित न होना। यह समझना कि परमात्मा को भक्ति कबूल हो गई। भक्ति रस है। ‘शाखों को तुम क्या छू आए, कांटों से भी खुशबू आए’ शेर सुनाते हुए बोले कि अत्यंत अहंकार जीव को दुष्ट बनाता है। यही कारण है ब्रह्म संबंध नहीं हो पाता। ठाकुरजी और चैतन्य महाप्रभु का प्रसंग सुनाते बताया कि महाप्रभु प्रसन्न होकर जिसे प्रभु के पास भेजते हैं उसे ठाकुर स्वीकार कर लेते हैं। महाप्रभु वैष्णव सेवा और भक्ति से प्रसन्न होते हैं। निःस्वार्थ भाव से सेवा करें। उंच-नीच या जात-पात का भेद न रखें। उन्होंने कहा कि भक्ति नेत्र से विश्व रूप दर्शन करें। विश्व रूप दर्शन से ज्ञान प्राप्ति होती है। माया का मोह छूटता है। अक्रूर घाट से कृष्ण के लौटते वक्त गोपियों की विरह वेदना पर ‘छुप गया कोई रे दिल से पुकार के, दर्द अनोखा हाय दे गया प्यार से’ शेर सुनाते भावुक हुए बोले, चला गया लीला कर के यार। गुरुवार को कथा मानसरोवर में होगी। -सुमित सारस्वत, मो.9462737273


मुस्कुराहट की कुलदेवी प्रसन्नता
बापू ने विनोद करते हुए कहा कि यह कृष्ण की नगरी है यहां आनंद करो। प्रसन्नता मुस्कुराहट की कुलदेवी है। सबके गुरु ब्राह्मण, ब्राह्मण के गुरु संन्यासी, संन्यासी के गुरु अविनाशी, अविनाशी के गुरु ब्रजवासी। यह सुनकर पूरा पांडाल ठहाकों से गूंज उठा। भज मन श्रीराधे.. कीर्तन गाते हुए श्रोता मंत्रमुग्ध होकर झूम उठे।

प्रेम देखकर सगाई करो
भगवान शिव-पार्वती का विवाह प्रसंग सुनाते हुए बापू ने संदेश दिया कि सगाई प्रेम देखकर करो। रिश्ता जोड़ने के लिए परिवार, व्यापार, कुल, रंग, रूप ना देखें। भगवान शिव और माता पार्वती ने भी एक-दूसरे के प्रति प्रेम भाव देखकर सगाई की। प्रेम संबंधों से रिश्ता दूसरों के लिए प्रेरणा बनता है।

धोखा देने वाले पर कब तक भरोसा करें ?
एक भक्त के इस सवाल पर बापू ने कहा कि अगर भरोसा करना हो तो लुट जाना, मिट जाना, हार जाना, मार खाना, गाली सुनना, बदनामी सहन करने की तैयारी करके रखना। भरोसा भजन है। याद रखना जिसके पास विश्वास है उसके पास विश्वनाथ है। ‘था जलाना ही तो किसलिए मेरे गेसूं संवारे गए..’ शेर सुनाते हुए बोले, जिंदगी से कभी शिकायत न करना।

नया भजन सुनें : सांवरिया तेरी याद में

बापू ने सुनाए मासूम गाज़ियाबादी के शेर..
जिंदगी से कोई शिकवा नहीं,
जैसे गुजरी गुजारे गए।
एक तुम थे जो न वापस मुड़े,
एक हम थे जो तुम्हें पुकारे ही गए।
सुनते दीवाने की भी जरा,
आप पत्थर ही मारे गए।

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