यहां सैकड़ों सालों से चिताएं जलती आ रही हैं। माना जाता है कि यहां मोक्ष प्राप्त करने वाला कभी दोबारा गर्भ में नहीं पहुंचता है। सिर्फ बनारस और आसपास से ही नहीं बल्कि देश के दूरदराज से भी लोग इसी घाट से अपने प्रियजनों को अंतिम विदाई देते हैं। औसतन 30 से 35 चिताएं रोज जलती हैं।
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मणिकर्णिका घाट को धरती का महाश्मशान कहा जाता है। यहां के लोग बताते हैं कि भगवान शंकर की पत्नी पार्वती की मणि यहां गिरी थी। इसलिए इसका नाम मणिकर्णिका है। यहां कई बार शवों को भी अपनी बारी का इंतज़ार करना पड़ता है। जितने शव जल रहे होते हैं, उससे ज्यादा शव दाह संस्कार की कतार में रहते हैं। मणिकर्णिका घाट पर शवों को शव को अग्नि देने से पहले गंगा में स्नान कराने की परंपरा है। शव को अर्थी समेत गंगा में डुबकी लगवा दी जाती है।
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