✍ सुमित सारस्वत
विश्व विख्यात कालबेलिया डांसर गुलाबो आगामी 9 मार्च को ब्यावर आएंगी। वे यहां आयोजित मिस्टर एंड मिस ब्यावर 2024 फैशन शो में बतौर अतिथि शिरकत करेंगी। रेड स्टार ग्रुप की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में फैशन मॉडल और टीवी कलाकार भी शामिल होंगे।
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कार्यक्रम संयोजक उर्मिला सोलंकी ने मीडिया को बताया कि प्रतियोगिता में जयपुर, अजमेर, सोजत, ब्यावर व अन्य स्थानों से करीब 50 प्रतिभागी शामिल होंगे। मिस्टर एंड मिस का खिताब जीतने वाले विजेताओं को संयुक्त रूप से 21000 नकद पुरस्कार और ट्रॉफी प्रदान की जाएगी। 18 से 40 वर्ष तक की आयु के प्रतिभागी 500 रुपए रजिस्ट्रेशन फीस के साथ आगामी 7 मार्च तक आवेदन कर सकते हैं। आवेदन के बाद प्रतिभागी को रैंपवॉक का प्रशिक्षण दिया जाएगा।
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आयोजन में भागीदार बन रहे फिल्म निर्देशक सुनीत कुमावत ने कहा कि हर कलाकार के लिए मुंबई सपनों की सिटी है लेकिन माता-पिता अपने बच्चों को वहां तक जाने नहीं देते। ऐसे कलाकारों को मंच देने के लिए ऐसे आयोजन जरूरी है। इस प्रतियोगिता में विजेता रहने वाले प्रतिभागियों को आगामी फिल्मों और वेब सीरीज में अभिनय करने का अवसर दिया जाएगा। इस दौरान अक्षरा प्रकाश, मनीषा धूत, नोरत सोलंकी व अन्य सदस्य मौजूद रहे। आयोजन के लिए अक्षरा प्रकाश, मनीषा धूत, नोरत सोलंकी व कंपनी के अन्य सदस्य तैयारियों में जुटे हैं। ©सुमित सारस्वत, मो.9462737273
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February 13, 2024
इंटरनेशनल डांसर गुलाबो आएंगी ब्यावर, मिस्टर एंड मिस ब्यावर फैशन शो में करेंगी शिरकत - Gulabo Dancer In Beawar
Sumit Saraswat available on :
October 31, 2018
हम बाजार में या हम में बाजार ? | Market
Sumit Saraswat SPOctober 31, 2018Article, bazaar, Deepawali, Diwali, fashion, mall, Market, online shopping
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फैशन के इस दौर में इतने तरह के पहनावे इजाद हो गए हैं कि हम बाजार के लिए एक प्रयोगशाला बनकर रह गए हैं। कपड़े अब सिर्फ पहनावा भर नहीं हैं बल्कि देह को सजाने का सबसे जरूरी माध्यम बन गए हैं। इस बाजार युग में बाजार कुछ भी बेच रहा है, हम कुछ भी खरीद रहे हैं। जब तक दुकानों तक जाने की जहमत थी तब तक तो कुछ गनीमत थी कि हम बाजार में थे पर जब से ऑनलाइन बाजार ने दस्तक दी है बाजार हममें आ गया है। दिन रात हम कुछ न कुछ खरीदने की सोचते हैं और बेतहाशा खरीद भी रहे हैं।
पहले खरीददारी अपनी जरूरतों को ध्यान में रखकर होती थी। अब बाजार तय करता है कि हम क्या पहनें, क्या खाएं, कहां जाएं? इसके लिए उसे 'पहले आओ पहले पाओ' या फिर कुछ डिस्काउंट का लालच भर देना होता है। कुछ ऑनलाइन दुकानें तो रात में खुलती हैं। जब सबके सोने का टाइम होता है। यह वक्त कुछ लोगों के लिए कुछ भी खरीद लेने का सुनहरा अवसर होता है। बाजार ने कुछ भी खरीद लेने की एक ऐसी बीमारी हमारे भीतर पैदा कर दी है जिसका इलाज खोज पाना फिलहाल मुश्किल है।
कई बार डिस्काउंट के चक्कर में ऐसी चीजें भी खरीद रहे हैं जो हमारे काम की है ही नहीं। धीरे धीरे हमारे घर बेकार चीजों के गोदाम बनते जा रहे हैं।
प्राय: सभी युगों में बाजार की अपनी भूमिका रही है। पहले लोग अपनी आवश्यकताएं उपलब्ध अपनी वस्तुओं को किसी अन्य को देकर उससे अपनी जरूरत का सामान लेकर पूरी किया करते थे। फिर मुद्राओं का चलन शुरू हुआ। मुद्रा देकर अपनी जरूरतें पूरी करने लगे। और आज ऑनलाइन शॉपिंग इसका अत्याधुनिक रूप है।
अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यक्ति हर युग में बाजार पर निर्भर रहा है। पर आज का बाजार युग शायद पहले से भिन्न है। हम बाजार पर सिर्फ अपनी आवश्यकताएं पूरी करने तक सीमित नहीं हैं बल्कि बाजार तय करने लगा है कि हम क्या खरीदें, क्या ना खरीदें। एक प्रकार से बाजार ने हमें मानसिक रूप से गुलाम बना दिया है। ज्यादा से ज्यादा उत्पादन और ज्यादा से ज्यादा खपत आज के डवलपमेंट का मूल मंत्र बन गया है।
यह आज के बाजार की माया ही है कि अब वही तय कर रहा है हमें कैसे रहना चाहिए। डिस्काउंट, ऑफर और घर तक फ्री डिलेवरी ने हमारी आदत और खराब कर दी है। धीरे धीरे घर में कुछ अच्छा और स्वादिष्ट खाने-बनाने का चलन खत्म हो गया है। मेहमाननवाजी खत्म होती जा रही है। बाजार कहता है कि आप तो रोज घर का फालतू खाना खाते हैं आज हमारे रेस्टोरेंट में आइये, मेहमानों को भी लाइये स्वादिष्ट खाना सिर्फ यहां मिलता है। वक्त निकालकर अब हम स्वादिष्ट खाने वहीं जाते हैं जहां बाजार हमें बुलाता है। मेहमानवाजी का भी यही एक रास्ता बचा है कि जो मेहमान आएं उन्हें भी रेस्टोरेंट ले चलो। यह एक प्रकार का स्टेटस सिम्बल भी बन गया है कि अगर आप फैमिली के साथ होटल, रेस्टोरेंट, मॉल में ना जाएं तो आप पिछड़े हैं। और इस पिछड़ेपन के दाग से बचने के लिए होटल, रेस्टोरेंट, मॉल में दिनों दिन भीड़ बढ़ती जा रही है। -डॉ.कंवलजीत कौर, लेखिका
लेखिका परिचय
पहले खरीददारी अपनी जरूरतों को ध्यान में रखकर होती थी। अब बाजार तय करता है कि हम क्या पहनें, क्या खाएं, कहां जाएं? इसके लिए उसे 'पहले आओ पहले पाओ' या फिर कुछ डिस्काउंट का लालच भर देना होता है। कुछ ऑनलाइन दुकानें तो रात में खुलती हैं। जब सबके सोने का टाइम होता है। यह वक्त कुछ लोगों के लिए कुछ भी खरीद लेने का सुनहरा अवसर होता है। बाजार ने कुछ भी खरीद लेने की एक ऐसी बीमारी हमारे भीतर पैदा कर दी है जिसका इलाज खोज पाना फिलहाल मुश्किल है।
कई बार डिस्काउंट के चक्कर में ऐसी चीजें भी खरीद रहे हैं जो हमारे काम की है ही नहीं। धीरे धीरे हमारे घर बेकार चीजों के गोदाम बनते जा रहे हैं।
प्राय: सभी युगों में बाजार की अपनी भूमिका रही है। पहले लोग अपनी आवश्यकताएं उपलब्ध अपनी वस्तुओं को किसी अन्य को देकर उससे अपनी जरूरत का सामान लेकर पूरी किया करते थे। फिर मुद्राओं का चलन शुरू हुआ। मुद्रा देकर अपनी जरूरतें पूरी करने लगे। और आज ऑनलाइन शॉपिंग इसका अत्याधुनिक रूप है।
अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यक्ति हर युग में बाजार पर निर्भर रहा है। पर आज का बाजार युग शायद पहले से भिन्न है। हम बाजार पर सिर्फ अपनी आवश्यकताएं पूरी करने तक सीमित नहीं हैं बल्कि बाजार तय करने लगा है कि हम क्या खरीदें, क्या ना खरीदें। एक प्रकार से बाजार ने हमें मानसिक रूप से गुलाम बना दिया है। ज्यादा से ज्यादा उत्पादन और ज्यादा से ज्यादा खपत आज के डवलपमेंट का मूल मंत्र बन गया है।
यह आज के बाजार की माया ही है कि अब वही तय कर रहा है हमें कैसे रहना चाहिए। डिस्काउंट, ऑफर और घर तक फ्री डिलेवरी ने हमारी आदत और खराब कर दी है। धीरे धीरे घर में कुछ अच्छा और स्वादिष्ट खाने-बनाने का चलन खत्म हो गया है। मेहमाननवाजी खत्म होती जा रही है। बाजार कहता है कि आप तो रोज घर का फालतू खाना खाते हैं आज हमारे रेस्टोरेंट में आइये, मेहमानों को भी लाइये स्वादिष्ट खाना सिर्फ यहां मिलता है। वक्त निकालकर अब हम स्वादिष्ट खाने वहीं जाते हैं जहां बाजार हमें बुलाता है। मेहमानवाजी का भी यही एक रास्ता बचा है कि जो मेहमान आएं उन्हें भी रेस्टोरेंट ले चलो। यह एक प्रकार का स्टेटस सिम्बल भी बन गया है कि अगर आप फैमिली के साथ होटल, रेस्टोरेंट, मॉल में ना जाएं तो आप पिछड़े हैं। और इस पिछड़ेपन के दाग से बचने के लिए होटल, रेस्टोरेंट, मॉल में दिनों दिन भीड़ बढ़ती जा रही है। -डॉ.कंवलजीत कौर, लेखिका

लेखिका परिचय
डॉ. कंवलजीत कौर दिल्ली यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर और लेखिका हैं। इन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से पीएचडी की है। सामाजिक विषयों पर लेख लिखती हैं।