दुनिया के सबसे प्राचीन शहर काशी के 'श्मशान' में जलती चिताओं के बीच अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त रामकथा मर्मज्ञ संत मोरारी बापू के श्रीमुख से 'मानस मसान' कथा का सुमित सारस्वत द्वारा विशेष कवरेज
मोक्ष नगरी काशी में आयोजित रामकथा में अंतर्राष्ट्रीय संत मोरारी बापू ने 'घर मसान परिजन जनु भूता, सुत हित मीत मनहुँ जमदूता' श्लोक से समझाया कि हर घर मसान है क्योंकि घर में किसी की मृत्यु हुई है। हर प्राणी भूत है क्योंकि भूतकाल में रहता है। मसान में पिता शिव और माता पार्वती क्रीड़ा करते हैं। यह शिव-पार्वती यानि मां-बाप का घर है। इससे घबराए नहीं। यह एक अदभुत प्रेरणा है।
बापू ने अपनी 800वीं मानस मसान कथा में मसान का सार समझाते हुए कहा कि मसान ज्ञान की भूमि है। समय मिले तो सप्ताह में एक बार मसान का चक्कर लगाकर आएं। मैं भी जाता हूं। कई बार तो मैं मसान में सोता हूं। सत्य के उपासक राजा हरिश्चंद्र भी यहां रहे। याद रखें मसान आसानी से नसीब नहीं होता। मसान पाने के लिए इंसान को मरना पड़ता है। किसी शायर ने लिखा है 'ऐ कब्र मैं तुझसे लिपटकर क्यों ना सोऊँ, मैंने तुझे जान देकर पाया है।' मुक्तिधाम के गूढ़ तत्वों की विशद व्याख्या करते हुए कहा कि मानस स्वयं एक मसान है। जीवन से प्रलोभन और मृत्यु का भय निकल जाए तो मुक्ति मुट्ठी में आ जाती है। उन्होंने कहा कि निश्चितता आनंददायक है और अनिश्चितता शोकदायक है। मृत्यु निश्चित है, फिर शोक क्यों करना। 'हरि इच्छा भावि बलवाना, हृदय विचार शंभू सुजाना' श्लोक से समझाया कि निश्चित वही होता है जिसमें परमात्मा की इच्छा हो। हमारी इच्छा से कुछ भी संभव नहीं है। यह सत्य है और सत्य को सहजता से स्वीकार करो।
स्कंद पुराण में काशी खंड के अनुसार काशी में मृत्यु पर मोक्ष प्राप्त होता है। इसीलिए यहां 24 घंटे चिता जलती है। बापू ने कहा कि परमात्मा के नाम की महिमा अतुलनीय है। नाम सुमिरन से दसों दिशाओं में मंगल शुद्धि होती है। प्रतिदिन नाम सुमिरन अवश्य करें। राम नाम मंत्र अपना लेने के बाद तंत्र साधना की जरूरत नहीं पड़ेगी। महात्मा गांधी ने कहा था कि देश छोड़ दूंगा मगर राम नाम नहीं छोड़ सकता। ओशो के अनुसार सृष्टि की रचना के बाद पहला शब्द 'राम' आया। कथा में मानस की स्वरमयी पंक्तियों के साथ लय-ताल के समन्वय पर कथा प्रेमी झूमने लगे। कथा में महामंडलेश्वर संतोष दास सतुआ बाबा, पद्मभूषण पं. छन्नूलाल मिश्र, कथा यजमान मिराज ग्रुप के एमडी मदन पालीवाल सहित देशभर से आए हजारों श्रोता शामिल हुए। -सुमित सारस्वत की रिपोर्ट। मो.09462737273
मंच पर व्यासपीठ के पीछे मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं को उकेरा गया है, जिससे आभास हो रहा है कि बापू श्मशान में कथा सुना रहे हैं। इसके साथ ही उतर वाहिनी मां गंगा की बहती निर्मल धारा के बीच काशी विश्वनाथ के मंदिर को चित्रित किया गया है। व्यासपीठ पर हनुमान जी और शिवलिंग की छवि भी स्थापित है।
तुम भूत, मैं महाभूत
बापू ने कहा, लोग मसान के भूतों से डरते हैं। जीवित व्यक्ति से डरो। जो मर गया वो तो देवता बन गया। तुम भूत, मैं महाभूत और हमारा नाथ भूतनाथ शिव। बापू ने इस बात के साथ 'जय भूतनाथ' का जयघोष करवाया।
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..तो मृत्यु महोत्सव बन जाएगी
वाराणसी में ज्ञान-भक्ति-वैराग्य की अविरल धारा प्रवाहित करते हुए बापू ने सुख और आनंद में अंतर की व्याख्या की। उन्होंने बताया कि स्वामी शरणानंदजी के अनुसार सुख वो है जिससे दुःख दब जाए और आनंद वो है जो दुःख को जड़ से मिटा दे। इंसान अपना स्वभाव भूल गया है। आनंद से दूर हो गया है। मृत्यु का आनंद लेना हो तो सुमिरन बढ़ाओ। सुमिरन से आनंद का आगमन होगा तो मृत्यु महोत्सव बन जाएगी।
भूतपूर्व नेताओं पर व्यंग्य
बापू बोले कि भूत वो है जो भूतकाल का शोक करे। सत्ता से हटने के बाद नेता भी भूत का चाव नहीं छोड़ते और अपने नाम के साथ भूतपूर्व प्रधान, भूतपूर्व विधायक लिखते हैं। उन्होंने संदेश दिया कि भूत को भूलो और आज का आनंद करो। पतित पावनी गंगा अविरल बह रही है, उससे सीखो और आज की सोचो। हनुमान चालीसा का 'भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे' श्लोक सुनाते हुए कहा कि नाम जाप करने से भूत और भविष्य की चिंता से मुक्ति मिलती है।
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जर्मन तकनीक का पांडाल
संत कृपा सनातन संस्था की ओर से 15 बीघा क्षेत्रफल में आयोजित कथा के लिए जर्मन तकनीक के पांडाल का निर्माण करवाया गया है। 80 हजार स्क्वायर फीट के भव्य पांडाल में स्पिंगलर्स लगवाए गए हैं, जिससे श्रोताओं को कथा श्रवण के दौरान गर्मी का आभास नहीं होगा। इसके साथ ही 800 सोफे और 10 हजार कुर्सियां लगवाई गई है।
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