मानस परिक्रमा में मोरारी बापू ने मानस की सात्विक-तात्विक चर्चा करते हुए बताया कि जामवंत के अनुसार सात प्रकार से परिक्रमा की जाती है। इसे सप्तपदी परिक्रमा भी कहते हैं। जैसे सात सोपान, सात दिवसीय भागवत कथा, ज्ञान की सात भूमिका, आकाश में सप्तऋषि मंडल है, उसी तरह परिक्रमा के भी सात प्रकार हैं। चरण, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, दर्शन और श्रवण से परिक्रमा कर सकते हैं। परिक्रमा दो घड़ी की भी हो तो जीवन धन्य हो जाता है।
ब्रज चौरासी कोस वृंदावन में आयोजित रामकथा में बापू ने कहा कि चरणों से जो परिक्रमा करे उसके हदय में राम विराजते हैं। तीर्थयात्रा पर भगवान की रज है। चरण परिक्रमा करने पर शायद वो रज मिल जाए जिससे अहिल्या का उद्वार हुआ था। याद रखना प्रभु रज मिलने पर सात जन्म का पाप छूट जाता है। मन से की जाने वाली परिक्रमा में देखा-देखी नहीं करें, यह बाधा बनती है। शरीर स्वस्थ ना हो, मौसम अनुकूल ना हो, आर्थिक स्थिति अच्छी ना हो तो बौद्धिक परिक्रमा करें। चित्त एकाग्रचित हो जाए तो परिक्रमा है। अहंकार मुक्त होना भी परिक्रमा है। परमात्मा ने पलकें इसलिए दी हैं कि जितना देखना हो देखो, फिर पलकें झुका दो। चारों ओर देखो हरि दिखे तो नेत्रों से दर्शन परिक्रमा है। भगवद कथा बार-बार सुनना श्रवण परिक्रमा है। हजारों-लाखों भक्त श्रवण परिक्रमा कर रहे हैं। इसीलिए हर कथाकार की कथा में हजारों श्रोता आते हैं। परिक्रमा अनवरत होनी चाहिए। -सुमित सारस्वत, मो.9462737273
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