नौ दिन पूर्व गोवर्धन से आरंभ हुई ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा रविवार को पुनः गिरीराज धरण की शरण में पहुंचकर पूरी हुई। आखरी पड़ाव पर अपनी 801वीं रामचरितमानस कथा के विराम से पूर्व संत मोरारी बापू ने परिक्रमा से प्राप्त होने वाले परिणाम पर प्रवचन दिए। उन्होंने कहा कि मानस परिक्रमा से दस फल प्राप्त होते हैं जिसकी जरूरत सभी को है। उत्साह, अनुराग (प्रेम), विराग (वैराग्य), दृढ़ भक्ति, मनोरथ, भवतरण, विजय, विवेक, विभूति (ऐश्वर्य), परम विश्राम।
बापू ने कहा कि रामकथा से उत्साह बढ़ता है। चाहे कितनी भी परेशानी आ जाए, उदास कभी न हों। जीवन में प्रेम होना बेहद जरूरी है। प्रेम में कोेई हित नहीं होना चाहिए। वैराग्य का पात्र अनुराग रूपी अमृत को सुरक्षित रखता है। भक्ति निरंतर बढ़नी चाहिए। मनोरथ पूर्ति होनी चाहिए। कथा श्रवण-भजन जारी रहे। विजय के साथ विवेक जरूरी है। बिना विवेक अहंकार आ जाएगा।
बापू ने कथा प्रसंग सुनाते हुए कहा कि सेतुबंध राम का ईश्वर है जिसने जोड़ने का कार्य किया। समाज में जो जोड़ने का विचार करे वही राम का वैचारिक ईश्वर है। रामायण सुख संपादन करती है। यह तभी संभव है जब समन्वय होगा। दो मिनट का मौन शोक सभा में ही नहीं, श्लोक सभा में भी होना चाहिए। घर में भी शांति रखें। रामकथा प्र्रयोगशाला है। यहां इंसान में परिवर्तन आता है। यह जोड़ने का साधन है। समन्वय हुआ तो सोने तक पहुंच जाओगे। लंका सोने की थी। राम भी सेतु समन्वय से ही सोने की लंका पहुंचे। याद रखें समन्वय वो करता है जिसके ह्रदय में हरि हो। जो ऊंच-नीच, अमीर-गरीब का भेद नहीं करता। बापू ने संदेश दिया कि अंधविश्वास से डरें नहीं। हरिनाम लें, हर शगुन सही होगा। रामचरितमानस से समाज का रावण मरेगा।
बापू ने प्रवाही परंपरा का निर्वहन करते हुए सबके मंगल की कामना की। मानस परिक्रमा कथा भगवान गोवर्धननाथ के चरणों को समर्पित की। जिन चार पंक्तियों के साथ कथा प्रारंभ की थी उन्हीं पंक्तियों को गाकर कथा को विराम दिया। जय श्री राम और हर-हर महादेव का जयघोष हुआ। व्यासपीठ से बापू ने सभी को हाथ जोड़कर कृतज्ञता प्रकट की। कथा में सांसद व अभिनेत्री हेमा मालिनी, संत कृपा सनातन संस्थान के अध्यक्ष मदन पालीवाल, महामंडलेश्वर गुरुशरणानंद महाराज सहित संत-महापुरूष व देशभर से आए हजारों श्रोता शामिल हुए। -सुमित सारस्वत, मो.9462737273
भजन सुनें : तेरे बिना में रोई मोहन
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