कार्तिक अमावस्या पर सभी ने उत्साह के साथ दीपावली पर्व मनाया था। आइए अब कार्तिक पूर्णिमा पर उसी उत्साह और उमंग के साथ देव दिवाली मनाते हैं। देव दिवाली का यह पर्व दीपावली के 15 दिन मनाया जाता है। इस उत्सव का सबसे ज्यादा महत्व और आनंद उत्तर प्रदेश के शहर वाराणसी में आता है। ये दुनिया के सबसे प्राचीन शहर काशी की विशेष सांस्कृतिक परंपरा और विरासत है।
गंगातट पर उतरे देवलोक की छवि जैसी है काशी की देव दीपावली। यहां गंगा के अर्धचंद्राकार घाटों पर दीपों का अदभुत जगमग प्रकाश 'देवलोक' जैसे वातावरण की सृष्टि करता है। पिछले 10-12 सालों में ही पूरे देश और विदेशों में आकर्षण का केंद्र बन चुका देव दीपावली महोत्सव 'देश की सांस्कृतिक राजधानी' काशी की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है। करीब तीन किलोमीटर में फैले अर्धचंद्राकार घाटों पर जगमगाते लाखों-लाख दीप, गंगा की धारा में इठलाते-बहते दीप, एक अलौकिक दृश्य की सृष्टि करते हैं। शाम होते ही सभी घाट दीपों की रोशनी में नहा-जगमगा उठते हैं। इस दृश्य को आँखों में समा लेने के लिए लाखों देशी-विदेशी अतिथि सैलानी घाटों पर उमड़ पड़ते हैं। इस बार यह अदभुत नजारा 4 नवंबर को दिखेगा। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी देव दिवाली मनाने काशी आएंगे। -सुमित सारस्वत
102 साल पहले पंचगंगा घाट से हुई थी शुरुआत
बताते हैं देव दिवाली की परंपरा सबसे पहले पंचगंगा घाट पर 1915 में हजारों दीये जलाकर शुरु की गई थी। बाद में इस प्राचीन परंपरा को काशी के लोगों ने आपसी सहयोग से महोत्सव में बदल कर विश्वप्रसिद्ध कर दिया। इस मौके पर असंख्य दीपकों और झालरों की रोशनी से रविदास घाट से लेकर केशव घाट और वरुणा नदी के घाटों पर बने सारे देवालय, महल, भवन, मठ-आश्रम जगमगा उठते हैं। इस अदभुत नजारे को देख कर लगता है कि मानो पूरी आकाश गंगा ही जमीन पर उतर आई हो।
तब स्वर्ग लोक में जगमगाए थे दीप
ये तो सभी जानते हैं कि काशी यानि बनारस और वाराणसी को शिव की नगरी कहा जाता है। यहां ये उत्सव मनाने के पीछे शिव से जुड़ी एक कथा प्रचलित है। बताते हैं कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवतागण दिवाली मनाते हैं क्योंकि इसी दिन देवताओं का काशी में प्रवेश हुआ था। पौराणिक कथा के अनुसार पहले तीनों लोकों में त्रिपुरासुर राक्षस का राज चलता था। देवतागणों ने भगवान शिव के समक्ष त्रिपुरासुर राक्षस से उद्धार की विनती की। भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन राक्षस का वध कर उसके अत्याचारों से सभी को मुक्त कराया और त्रिपुरारि कहलाए। इससे प्रसन्न हो कर ही देवताओं ने स्वर्ग लोक में दीप जलाकर दीपोत्सव मनाया था और तभी से कार्तिक पूर्णिमा को देव दिवाली मनाई जाने लगी।