काशी में आयोजित मानस मसान कथा में रामकथा मर्मज्ञ संत मोरारी बापू ने कहा कि मृत्यु कन्हाई है। गीता में कृष्ण ने कहा है कि मैं मृत्यु हूं। अगर मृत्यु आए तो समझो कन्हैया आए हैं। शोक नहीं, खुशी मनाओ। मृत्यु सर्वव्यापक है। रामराज्य में भी मृत्यु थी। मसान और मृत्यु से कभी डरना नहीं चाहिए। भूतकाल का शोक मिट जाए, भविष्य की चिंता मिट जाए और वर्तमान का मोह छूट जाए तो जीव की मुक्ति हो जाती है। उसका मोक्ष हो जाता है। भूत किसी भी व्यक्ति के पास नहीं जाते हैं बल्कि जहां शिवत्व और देवत्व होता हैं, वहां जाते हैं।
बापू ने तात्विक-सात्विक चर्चा करते हुए कहा कि मसान गंगा की तरह पवित्र है। दुनिया का ऐसा कोई मसान नहीं जहां गंगा नहीं है। जहां मसान वहां शिव है। जहां शिव है वहां गंगा है। जैसे समुद्र मंथन से 14 रत्न प्राप्त हुए थे ठीक उसी तरह मसान मंथन से भी 7 रत्न प्राप्त होते हैं। पहला रत्न शांति है। जो मरा है उसको यह रत्न प्राप्त होता है। दूसरा रत्न प्राप्ति है। तीसरा कीर्ति है क्योंकि मर जाने के बाद ही सब हमारी सराहना करते है। शोक सभा में कीर्ति ही गाई जाती है। चौथा रत्न अनासक्ति है। मसान में जलाया जाए उसके बाद उस पर फूलमाला डालें या नहीं, कोई फर्क नहीं पड़ता। यही अनासक्ति है। पांचवां रत्न भक्ति है क्योंकि भक्ति का दाता मसान में बैठा है। छठा रत्न आत्मज्योति है। जो ज्योति चली गई है, वह धीरे-धीरे आत्मज्योति प्रज्जवलित करती है। धृति यानि धैर्य रूपी रत्न मसान से मिला सातवां रत्न है। धैर्य धारण करो, किसी से उलझो मत और अपने ईष्ट पर अटल विश्वास रखो। -सुमित सारस्वत, मो.09462737273
मानस चौपाई व मानस भुवनेश्वर का विमोचन
कथा प्रारंभ होने से पूर्व मोरारी बापू ने श्री चित्रकूट धाम ट्रस्ट, तलगाजरड़ा से प्रकाशित मानस चौपाई व मानस भुवनेश्वर नामक दो पुस्तकों का विमोचन किया। पुस्तक संपादक नितिन बड़गामा ने बताया कि मानस भुवनेश्वर पुस्तक में भुवनेश्वर में हुई रामकथा का प्रवचन है। मानस चौपाई में उन सभी चौपाइयों का संकलन है जिन पर बापू ने शुरू से लेकर जूनागढ़ की मानस नागर तक कथा की है। बापू की पुस्तक हिंदी और गुजराती भाषा में प्रकाशित होती है। अंग्रेजी संस्करण ऑनलाइन उपलब्ध है। बापू की यह वैचारिक संपदा प्रसाद रूप में निःशुल्क बांटी जाती है।
कीर्ति के लिए मरना सीखो
बापू ने कहा कि अगर समाज में कीर्ति प्राप्त करनी हो तो मरना सीखो। मरने के बाद सब तारीफ करते हैं। आपका काम चाहे जैसा भी रहा हो, मृत्यु बाद कीर्ति ही मिलेगी। मुर्दा होना मर्दों का काम है। ओशो ने कहा है, डेथ जितनी डेप्थ नहीं।
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बिसलरी की जगह गंगा जल
बापू ने गंगा की महिमा बताते हुए कहा कि गंगा निर्मल और अमृतमयी जल है। मैं बरसों से गंगा जल पी रहा हूं। मैं चाहता हूं कि देश में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि बिसलरी की जगह गंगा जल ही बिके। मेरे गंगा जल पीने से एक फायदा हुआ कि घर-घर में गंगा जल रहता है। मैं कहीं भी जाऊं वहां गंगा जल मिलता है।
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गंगा को गंदा करना अपराध
कथा में बापू ने गंगा की अस्वच्छता पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, गंगा को गंदा करना अपराध है। शीलवान आदमी गंगा को गंदा करे तो वह अपराधी है। सरकार ने स्वच्छता अभियान चला रखा है। गोरख पीठाधीश्वर सीएम योगी आदित्यनाथ ताजमहल की झाडू लगा रहे हैं। मैं स्वच्छता अभियान की सराहना करता हूं। हमें भी अपनी मानसिकता बदलते हुए इस अभियान में सहयोग करना चाहिए। अंदर से सभी तीर्थ पवित्र हैं लेकिन हमने सदियों से बाहर से उन्हें गंदा कर रखा है। सभी को स्वच्छता अभियान में जुटना चाहिए।
अंधश्रद्धा और शरणागति में अंतर
एक सवाल के जवाब में बापू ने कहा, अंधश्रद्धा कई बार होती है और कहीं भी ले जाती है। शरणाति सिर्फ एक बार होती है और एक से ही होती है। अंधश्रद्धा मत रखो, शरणागति करो।
बुद्ध पुरूष को पहचानने की विधि
बापू से एक भक्त ने प्रश्न किया कि बुद्ध पुरूष की पहचान कैसे करें तो बापू ने कहा वेश, संप्रदाय, तिलक, माला, भाषा के साथ बुद्ध पुरूष में यह चार वस्तु होनी चाहिए। पहला, जो सबका स्वीकार करता हो। दूसरा, किसी से कभी तकरार ना करे। तीसरा, मन, वचन, वाणी से किसी का तिरष्कार ना करे। चौथा, सबसे प्यार करे।
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बापू को ‘प्रेत अवॉर्ड’
काशी के एक भाई ने लिखा, बापू आपकी कथा सुनकर इतना अच्छा लगा कि हम आपको ‘प्रेत अवॉर्ड’ देना चाहते हैं। इस अवॉर्ड के यजमान पद पर मदन भाई को घोषित करते हैं। बापू ने व्यंग्यात्मक जवाब में कहा, ‘मैं अवॉर्ड नहीं लेता। अगर दोगे तो स्वीकार कर लूंगा और वो प्रेत आपको ही लौटा दूंगा।’ बापू ने बताया कि एक बार मुझे देश के बड़े अवॉर्ड का ऑफर आया था मगर मैंने प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। मेरे लिए मेरी रामकथा ही सबसे बड़ा अवॉर्ड है।
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सांप्रदायिक सौहार्द का मिलन
शुक्रवार को कथा में सांप्रदायिक सौहार्द का मिलन हुआ। शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे सादिक और हरिद्वार के संत चिदानंद सरस्वती ने कथा में पहुंचकर बापू का सम्मान किया। बापू ने मौलाना को शॉल भेंट की। इस दौरान मुख्य यजमान मदन पालीवाल, महामंडलेश्वर संतोष दास महाराज, मंत्रराज पालीवाल सहित अन्य गणमान्य अतिथि मौजूद रहे।
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