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April 19, 2017

सरकार ने किया सियासी सिकंदरों के सपने का समापन

लाल बत्ती लगी सरकारी कार का सायरन साइलेंट

'दिल के अरमां आंसूओं में बह गए, हम वफ़ा कर के भी..' कुछ यही भाव आज उन नेताओं के मन में है जिन्होंने राजनीति में रहते हुए लाल बत्ती लगी कार में घूमने का सपना संजो रखा था। सरकार के नए फैसले से सियासी सिकंदरों के सपनों पर पानी फिर गया। सियासी गलियारे में कई नेताओं ने जी जान लगाकर उम्मीदों की जाजम बिछा रखी थी। सिपहसालारों ने भी अपने आका को लाल बत्ती लगी सरकारी कार के सब्जबाग दिखाकर सम्मान दिलाने की सहानुभूति बटोरी मगर लाल बत्ती के सपने का समापन हो गया। सरकार ने अपने तरकश से नया तीर चलाते हुए लाल बत्ती के सायरन को साइलेंट कर दिया।

देखें : लाल बत्ती पर रोक से मायूस नेताओं के दर्द की दास्तां

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को हुई केबिनेट बैठक में वीआईपी कल्चर खत्म करने के लिए लाल बत्ती के इस्तेमाल पर अंकुश लगाने का फैसला लिया। अब एक मई से केंद्रीय मंत्री और केंद्रीय अधिकारी भी लाल बत्ती का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे। अधिकारियों, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और जजों को अपनी कारों पर लालबत्ती इस्तेमाल करने पर प्रतिबंधित कर दिया गया है। केवल आपातकालीन वाहनों को नीली बत्ती इस्तेमाल की अनुमति होगी। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने अपनी खुद की कार से लालबत्ती हटाने के बाद यह जानकारी दी।
मोदी सरकार के इस फैसले के बाद राजस्थान सरकार ने भी इसे प्रदेश में तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने आदेश जारी कर सभी मंत्रियों और अधिकारियों को तुरंत लाल बत्ती हटाने के आदेश दिए। सीएम राजे ने कहा कि यह  प्रधानमंत्री की दूरदर्शी सोच का परिचायक है। गौरतलब है कि राजे खुद भी लाल बत्ती लगे वाहन का इस्तेमाल नहीं कर रही है। उन्होंने सीएम बनते ही लाल बत्ती लगी सरकारी कार लौटा दी थी। आपको बता दें  कि पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह और यूपी के सीएम आदित्यनाथ योगी लाल बत्ती का इस्तेमाल पहले ही छोड़ चुके हैं। -सुमित सारस्वत SP, स्वतंत्र लेखक

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कौन लगा सकता है सायरन और लाल बत्ती
केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम 1989 के नियम 108 की धारा (III) के तहत निम्न व्यक्ति ड्यूटी के दौरान वाहन पर लाल बत्ती लगाने के हकदार है।
चमकने वाली लाल बत्ती- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, पूर्व उपराष्ट्रपति, उपप्रधानमंत्री, भारत के चीफ जस्टिस, लोकसभा स्पीकर, केंद्र सरकार के केबिनेट मंत्री, योजना आयोग उपाध्यक्ष, पूर्व प्रधानमंत्री, लोकसभा और राज्यसभा में प्रतिपक्ष नेता, सुप्रीम कोर्ट जज, राजयपाल, मुख्यमंत्री, दूसरे देशों के राजदूत और कॉमनवेल्थ देशों के हाई कमिशनर।
बिना चमकने वाली लाल बत्ती- मुख्य चुनाव आयुक्त, कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया, राज्यसभा के उपसभापति, लोकसभा डिप्टी स्पीकर, केंद्र सरकार के राज्यमंत्री, योजना आयोग सदस्य, अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति व जनजाति आयोग अध्यक्ष, अटार्नी जनरल, केबिनेट सचिव, तीनों सेनाओं के प्रमुख, सेन्ट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव अध्यक्ष, यूपीएससी अध्यक्ष, हाईकोर्ट चीफ जस्टिस, सॉलिसिटर जनरल, राज्यों के उपमुख्यमंत्री, दूसरे देशों के दूत व मंत्रियों को भी यह अधिकार दिया गया है।
सायरन- दिल्ली मोटर व्हीकल्स रुल्स 1993 के अनुसार सिर्फ इमरजेंसी वाहन जैसे फायर ब्रिगेड़, एंबुलेंस, पुलिस कंट्रोल रुम की वैन में चमकने वाली या घूमने वाली लाल बत्ती के साथ सायरन लगा सकते हैं। वीआईपी की पायलट गाडी पर भी सायरन लगाया जा सकता है।
चमकने वाली नीली वीआईपी लाइट - चमकने वाली नीली वीआईपी लाइट को पुलिस पेट्रोलिंग वाहन, पायलट वाहन लगा सकते हैं।
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April 4, 2017

बेटी की भावना का मजाक ना बनाएं

जिस समय देश में मां की आराधना का पर्व नवरात्र मनाते हुए देवी की पूजा-अर्चना हो रही है, उन्हीं दिनों में वीडियो वायरल कर एक बेटी का मजाक बनाया जा रहा है। हैरत है कि वीडियो में बोलने वाली बिटिया के भाव समझे बिना लोग बड़े चाव से इसे वायरल कर आग की तरह फैलाने की अपील कर रहे हैं। गायत्री मंत्र का उच्चारण भी जिन्हें ठीक से याद नहीं होगा, ऐसे लोग धर्म और आस्था की बड़ी-बड़ी बातें करते हुए खुद को समाज में श्रेष्ठ बताने के लिए इस वीडियो के साथ मनगढ़ंत बातें लिखकर वाहवाही लूटने का प्रयास कर रहे हैं।
सोशियल मीडिया पर बिजली की रफ्तार से भी तेज वायरल हो रहा यह वीडियो देवास (मध्यप्रदेश) में आयोजित एक धर्मसभा का है। प्रतीत होता है कोई प्रश्नोत्तरी सत्र चल रहा है। 9 मिनट 8 सैकंड के इस वीडियो की शुरूआत में तोशा नामक एक लड़की अपने मन की बात साझा करते हुए पेड़ काटने पर पीड़ा व्यक्त कर रही है। उसका कहना है कि होली पर बड़े-बड़े पेड़ काटकर जला दिए जाते हैं। इन काटे गए पेड़ों के बदले कोई नया पौधा नहीं लगाता। उसने यह भी कहा कि होली परंपरागत तरीके से ही मनाई जाए लेकिन पेड़ काटने की बजाय कम लकड़ियां उपयोग में ली जा सकती है। वाकई इस लड़की ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए बेहद गंभीर बात समाज के समक्ष रखी। धर्मगुरु ने भी मुस्कुराते हुए इस लड़की की बात का मौन समर्थन किया। शायद वे भी मन में जानते थे कि पर्यावरण बचाने के लिए सरकारी या गैर सरकारी स्तर पर जो प्रयास किए जा रहे हैं वो नाकाफी है। वर्षा ऋतु में वृक्षारोपण अभियान के तहत जो पेड़-पौधे लगाए जाते हैं वो चंद रोज बाद सूखकर दम तोड़ देते हैं।
तोशा ने आगे कहा कि 'धर्मस्थलों में अभिषेक के दौरान खूब दूध चढ़ाया जाता है जबकि कम दूध से भी अभिषेक किया जा सकता है।' इस बात से तो मानो बवंडर आ गया। कुछ लोग तो बात का बतंगढ़ बनाते हुए तांडव करने लगे। सोशियल मीडिया में न जाने-जाने कैसे-कैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए अपने ही समाज की इज्जत उछालने लगे। सिर्फ अपनी बात रखने के लिए न जाने कैसे-कैसे हास्यास्पद तर्क दे दिए।
वीडियो में लड़की ने ना तो होली में लकड़ियां जलाने से इनकार किया है और न ही अभिषेक के दौरान दूध चढ़ाने के लिए। इसने सिर्फ मात्रा कम करने की बात कही है ताकि यह व्यर्थ ना हो और अन्य कामों में सदुपयोग हो सके। लोगों ने भावों को समझे बिना ही मुद्दा बना दिया। लोगों के पास इस बात का जवाब नहीं है कि यदि दूध चढ़ाने से ही ईश्वर अति प्रसन्न होते हैं तो प्रतिदिन दूध क्यों नहीं चढ़ाया जाता? सावन मास में जल अभिषेक की बजाय कोई भी भक्त दूध का टैंकर मंगवाकर अभिषेक क्यों नहीं करता? अगर आप सौ किलो दूध से अभिषेक करना ही चाहते हैं तो फिर दिन-विशेष का इंतजार क्यों? शायद इस बात का जवाब नहीं होगा क्योंकि सच्चाई तो यह है कि लोग एक गिलास पानी में चंद बूंदें दूध डालकर अभिषेक करते हैं।
यह स्वीकार करने में कतई संकोच नहीं होना चाहिए कि समाज में अंधविश्वास फैला है। कुछ साल पहले बड़ा शेषनाग आने की अफवाह फैलने पर दर्शन के लिए हजारों लोग सड़कों पर आ गए थे। कई महिलाएं तो हाथों में पूजा की थाली ऐसे ले आई जैसे नाग देवता को तिलक लगाकर आरती करेंगी। भादवा मास में एक लड़का लोटते हुए रामदेवरा जा रहा था तब कुछ अंधविश्वासी लोगों ने उसे लोटन बाबा बताकर पूजना शुरू कर दिया, जबकि लड़का खुद को सामान्य बालक बता रहा था। यह घटनाएं उदाहरण मात्र है। देश में ऐसी अंधविश्वासी घटनाओं के सैंकड़ों मामले हैं।
कुछ लोग इस बालिका की शिक्षा को लेकर भी सवाल उठा रहे हैं। लोगों का कहना है कि कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को धार्मिक संस्कार नहीं मिल सकते। ऐसे लोगों को याद होना चाहिए कि बच्चों में संस्कार बाल्यावस्था में परिवार से प्रारंभ होते हैं। कहा भी जाता है कि बच्चे की पहली शिक्षक मां होती है। और फिर कॉन्वेंट स्कूल में शिक्षा देने वाले अधिकांश शिक्षक भी तो आपके ही समाज के हैं। अगर भावी पीढ़ी की इतनी ही चिंता है तो क्यों अपने बच्चों को कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाने भेजते हो? क्यों कॉन्वेंट स्कूल में प्रवेश दिलवाने के लिए घंटों लाइन में खड़े रहकर मशक्कत करते हो? क्यों कॉन्वेंट स्कूल में शिक्षक बनकर जाते हो? दूसरों की तो छोड़ो, धर्म विशेष के संगठनों से जुड़े लोगों के बच्चे भी कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ रहे हैं। नर्सरी कक्षा में दाखिले के लिए भी एमपी, एमएलए से फोन करवाया जाता है। फिर क्यों किसी और को निशाना बनाने के लिए अपने ही समाज की बेटी को शर्मिंदा किया जा रहा है।
बेहद दुखी मन से बात लिखनी पड़ रही है कि इसी तरह मजाक बनाने और तुच्छ सोच रखने के कारण ही बेटियां अन्य धर्मों के प्रति आकर्षित हो रही है। सरेआम बेटियों की इज्जत उछालने से बेहतर है उनका सम्मान करना सीखो, ताकि उनका भी समर्पण भाव बना रहे। बेशक इस अनजान बेटी का समर्थन करने पर धर्म के प्रति समर्पण का दिखावा करने वाले कुछ लोगों को यह बात नमक की तरह खारी लग सकती है मगर यह भी सर्वविदित है कि सच्चाई हमेशा कड़वी ही होती है। इस बेटी ने हिम्मत करके समाज के समक्ष अपने मन की पीड़ा तो उजागर की मगर समाज ने जिस तरह इसका मजाक बनाया उसे देखकर उम्मीद नहीं कि भविष्य में कोई बेटी अपना दर्द समाज के समक्ष बयां कर पाएगी। ईश्वर ना करे इस तरह वीडियो वायरल होने के बाद अगर शर्मिंदगी के चलते इस बेटी ने कोई गलत कदम उठा लिया तो उसके जिम्मेदार आप ही होंगे। उचित होगा कि पर्यावरण संरक्षण और जीव दया के प्रति दिए गए संदेश को समझें और बेटी की भावनाओं का सम्मान करें। -सुमित सारस्वत SP, सामाजिक विचारक, मो.9462737273 
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April 3, 2017

सुमेरु संध्या में भक्ति रस से सराबोर होकर झूम उठे श्रोता

सुमेरु संध्या में भाव-विभोर होकर झूमती महिलाएं।
ब्यावर में आर्ट ऑफ लिविंग की ओर से आयोजित सुमेरु संध्या में श्रोता भक्ति रस से सराबोर हो गए। सुरों का सुरीला स्पंदन कार्यक्रम में अंतर्राष्ट्रीय गायक  प्रवीण मेहता ने सुमधुर भजनों की सरिता बहाई। जुगल राजस्थानी, अनुभव जैन, आरएन डाणी, कुलदीप चतुर्वेदी, ऋतु अग्रवाल, विनिता जैन ने श्रीश्री रविशंकर के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्जवलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। सुमित सारस्वत ने कुशल मंच संचालन करते हुए आर्ट ऑफ लिविंग संस्था के सेवा कार्यों की जानकारी दी। 


सिद्वि विनायक शरणम गणेशा... भजन से कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। इसके बाद जगदीश्वरी जगदंबा, परमेश्वरी जय दुर्गा.., शिव शिव शंकरा.., तू माने या ना माने दिलदारा.., सखी मंगल गाओ री, मोरे पिया घर आएंगे.., हरि सुंदर नंद मुकुंदा, नारायण हरिओम.. जैसे भजनों पर श्रोता मंत्रमुग्ध होकर झूम उठे। सुगंधित खुशबु के बीच बरसते फूलों ने वातावतरण को आनंदमय बना दिया। चंद्रा गुप्ता, राजेंद्र कौर, समृद्धि गर्ग, प्रकाश कावड़िया, दिनेश, अर्चना ने गायन में संगत दी। संस्था के डॉ.नरेंद्र आनंदानी, जसपाल हुड़ा, खुुशाल खत्री, राम पंजाबी, अंशुल बाफना, किशोर डेटानी ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम में अनिल फतेहपुरिया, राजेंद्र खंडेलवाल, रश्मि जैन, पूनम खंडेलवाल, नमिता जालान, इति अग्रवाल, शिल्पा जोशी, दीक्षा आनंदानी, साधना सारस्वत, श्रीकांत बिहानी, दिलीप बंसल, दिलीप शर्मा, विष्णु चेलानी, अमरचंद सांखला, अनिल शर्मा, अशोक पसारी, नरनारायण मोट, सुरेश जालान, बीएम व्यास, राकेश जोशी, अजय अजमेरा, स्वपनिल अग्रवाल, अनुपम रूणीवाल, निशा खंडेलवाल, ललिता जालान, इंदु जोशी, लता शर्मा, अंजू गर्ग, अदिति मित्तल, संगीत सारड़ा, बीना रांका, शीतल जोशी सहित  कई सदस्यों ने आनंद लिया। जयपुर से मनीष ग्रोवर, नाथद्वारा से शीला पुरोहित, हिमानी पुरोहित, उदयपुर से पवन, अतुल माहेश्वरी सहित कई स्थानों से आए सदस्यों ने भाग लिया। कार्यक्रम के अंत में उत्साह के साथ अनुभव जैन का जन्मदिवस मनाया गया। सभी ने उनके दीर्घायु होने की कामना करते हुए जन्मदिवस के मौके ऐसे सुन्दर आयोजन के लिए शुभकामनाएं दी। -सुमित सारस्वत SP, मो.9462737273
आर्ट ऑफ लिविंग के कार्यों की जानकारी देते उदघोषक सुमित सारस्वत।
सुमधुर भजनों की प्रस्तुति देते गायक प्रवीण मेहता।
सुमेरु संध्या का आनंद लेते श्रोता।
सुरों का सुरीला स्पंदन कार्यक्रम में भक्ति मग्न श्रोता।
सपत्निक जन्मदिवस की खुशियां मनाते अनुभव जैन।
शिक्षक व गायक प्रवीण मेहता के साथ आर्ट ऑफ लिविंग ब्यावर के सदस्य।




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