जिस समय देश में मां की आराधना का पर्व नवरात्र मनाते हुए देवी की पूजा-अर्चना हो रही है, उन्हीं दिनों में वीडियो वायरल कर एक बेटी का मजाक बनाया जा रहा है। हैरत है कि वीडियो में बोलने वाली बिटिया के भाव समझे बिना लोग बड़े चाव से इसे वायरल कर आग की तरह फैलाने की अपील कर रहे हैं। गायत्री मंत्र का उच्चारण भी जिन्हें ठीक से याद नहीं होगा, ऐसे लोग धर्म और आस्था की बड़ी-बड़ी बातें करते हुए खुद को समाज में श्रेष्ठ बताने के लिए इस वीडियो के साथ मनगढ़ंत बातें लिखकर वाहवाही लूटने का प्रयास कर रहे हैं।
सोशियल मीडिया पर बिजली की रफ्तार से भी तेज वायरल हो रहा यह वीडियो देवास (मध्यप्रदेश) में आयोजित एक धर्मसभा का है। प्रतीत होता है कोई प्रश्नोत्तरी सत्र चल रहा है। 9 मिनट 8 सैकंड के इस वीडियो की शुरूआत में तोशा नामक एक लड़की अपने मन की बात साझा करते हुए पेड़ काटने पर पीड़ा व्यक्त कर रही है। उसका कहना है कि होली पर बड़े-बड़े पेड़ काटकर जला दिए जाते हैं। इन काटे गए पेड़ों के बदले कोई नया पौधा नहीं लगाता। उसने यह भी कहा कि होली परंपरागत तरीके से ही मनाई जाए लेकिन पेड़ काटने की बजाय कम लकड़ियां उपयोग में ली जा सकती है। वाकई इस लड़की ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए बेहद गंभीर बात समाज के समक्ष रखी। धर्मगुरु ने भी मुस्कुराते हुए इस लड़की की बात का मौन समर्थन किया। शायद वे भी मन में जानते थे कि पर्यावरण बचाने के लिए सरकारी या गैर सरकारी स्तर पर जो प्रयास किए जा रहे हैं वो नाकाफी है। वर्षा ऋतु में वृक्षारोपण अभियान के तहत जो पेड़-पौधे लगाए जाते हैं वो चंद रोज बाद सूखकर दम तोड़ देते हैं।
तोशा ने आगे कहा कि 'धर्मस्थलों में अभिषेक के दौरान खूब दूध चढ़ाया जाता है जबकि कम दूध से भी अभिषेक किया जा सकता है।' इस बात से तो मानो बवंडर आ गया। कुछ लोग तो बात का बतंगढ़ बनाते हुए तांडव करने लगे। सोशियल मीडिया में न जाने-जाने कैसे-कैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए अपने ही समाज की इज्जत उछालने लगे। सिर्फ अपनी बात रखने के लिए न जाने कैसे-कैसे हास्यास्पद तर्क दे दिए।
तोशा ने आगे कहा कि 'धर्मस्थलों में अभिषेक के दौरान खूब दूध चढ़ाया जाता है जबकि कम दूध से भी अभिषेक किया जा सकता है।' इस बात से तो मानो बवंडर आ गया। कुछ लोग तो बात का बतंगढ़ बनाते हुए तांडव करने लगे। सोशियल मीडिया में न जाने-जाने कैसे-कैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए अपने ही समाज की इज्जत उछालने लगे। सिर्फ अपनी बात रखने के लिए न जाने कैसे-कैसे हास्यास्पद तर्क दे दिए।
वीडियो में लड़की ने ना तो होली में लकड़ियां जलाने से इनकार किया है और न ही अभिषेक के दौरान दूध चढ़ाने के लिए। इसने सिर्फ मात्रा कम करने की बात कही है ताकि यह व्यर्थ ना हो और अन्य कामों में सदुपयोग हो सके। लोगों ने भावों को समझे बिना ही मुद्दा बना दिया। लोगों के पास इस बात का जवाब नहीं है कि यदि दूध चढ़ाने से ही ईश्वर अति प्रसन्न होते हैं तो प्रतिदिन दूध क्यों नहीं चढ़ाया जाता? सावन मास में जल अभिषेक की बजाय कोई भी भक्त दूध का टैंकर मंगवाकर अभिषेक क्यों नहीं करता? अगर आप सौ किलो दूध से अभिषेक करना ही चाहते हैं तो फिर दिन-विशेष का इंतजार क्यों? शायद इस बात का जवाब नहीं होगा क्योंकि सच्चाई तो यह है कि लोग एक गिलास पानी में चंद बूंदें दूध डालकर अभिषेक करते हैं।
यह स्वीकार करने में कतई संकोच नहीं होना चाहिए कि समाज में अंधविश्वास फैला है। कुछ साल पहले बड़ा शेषनाग आने की अफवाह फैलने पर दर्शन के लिए हजारों लोग सड़कों पर आ गए थे। कई महिलाएं तो हाथों में पूजा की थाली ऐसे ले आई जैसे नाग देवता को तिलक लगाकर आरती करेंगी। भादवा मास में एक लड़का लोटते हुए रामदेवरा जा रहा था तब कुछ अंधविश्वासी लोगों ने उसे लोटन बाबा बताकर पूजना शुरू कर दिया, जबकि लड़का खुद को सामान्य बालक बता रहा था। यह घटनाएं उदाहरण मात्र है। देश में ऐसी अंधविश्वासी घटनाओं के सैंकड़ों मामले हैं।
कुछ लोग इस बालिका की शिक्षा को लेकर भी सवाल उठा रहे हैं। लोगों का कहना है कि कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को धार्मिक संस्कार नहीं मिल सकते। ऐसे लोगों को याद होना चाहिए कि बच्चों में संस्कार बाल्यावस्था में परिवार से प्रारंभ होते हैं। कहा भी जाता है कि बच्चे की पहली शिक्षक मां होती है। और फिर कॉन्वेंट स्कूल में शिक्षा देने वाले अधिकांश शिक्षक भी तो आपके ही समाज के हैं। अगर भावी पीढ़ी की इतनी ही चिंता है तो क्यों अपने बच्चों को कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाने भेजते हो? क्यों कॉन्वेंट स्कूल में प्रवेश दिलवाने के लिए घंटों लाइन में खड़े रहकर मशक्कत करते हो? क्यों कॉन्वेंट स्कूल में शिक्षक बनकर जाते हो? दूसरों की तो छोड़ो, धर्म विशेष के संगठनों से जुड़े लोगों के बच्चे भी कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ रहे हैं। नर्सरी कक्षा में दाखिले के लिए भी एमपी, एमएलए से फोन करवाया जाता है। फिर क्यों किसी और को निशाना बनाने के लिए अपने ही समाज की बेटी को शर्मिंदा किया जा रहा है।
बेहद दुखी मन से बात लिखनी पड़ रही है कि इसी तरह मजाक बनाने और तुच्छ सोच रखने के कारण ही बेटियां अन्य धर्मों के प्रति आकर्षित हो रही है। सरेआम बेटियों की इज्जत उछालने से बेहतर है उनका सम्मान करना सीखो, ताकि उनका भी समर्पण भाव बना रहे। बेशक इस अनजान बेटी का समर्थन करने पर धर्म के प्रति समर्पण का दिखावा करने वाले कुछ लोगों को यह बात नमक की तरह खारी लग सकती है मगर यह भी सर्वविदित है कि सच्चाई हमेशा कड़वी ही होती है। इस बेटी ने हिम्मत करके समाज के समक्ष अपने मन की पीड़ा तो उजागर की मगर समाज ने जिस तरह इसका मजाक बनाया उसे देखकर उम्मीद नहीं कि भविष्य में कोई बेटी अपना दर्द समाज के समक्ष बयां कर पाएगी। ईश्वर ना करे इस तरह वीडियो वायरल होने के बाद अगर शर्मिंदगी के चलते इस बेटी ने कोई गलत कदम उठा लिया तो उसके जिम्मेदार आप ही होंगे। उचित होगा कि पर्यावरण संरक्षण और जीव दया के प्रति दिए गए संदेश को समझें और बेटी की भावनाओं का सम्मान करें। -सुमित सारस्वत SP, सामाजिक विचारक, मो.9462737273
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