ग्लोबलाइजेशन के इस युग ने हमारी जेनरेशन को वैलेंटाइंस डे का तोहफा दिया है। यह दिन प्यार के नाम होता है। इतिहास के पन्ने पलटने पर आप पाएंगे कि प्यार को सोशली सेलिब्रेट करने के लिए पहले तो ऐसा कोई भी दिन मुकर्रर नहीं किया गया था। लेकिन फिर भी ऐसी क्या खासियत थी तब के प्यार में कि उसकी कहानियां इतना वक्त गुजर जाने के बाद भी इतिहास के पन्नों में अंकित हैं। हमारी जेनरेशन की ऐसी कोई लव स्टोरी क्यों नहीं, जिसका दम आने वाले पीढ़ियां भर सकेंगी। समझने की कोशिश करते हैं कुछ ऐसी ऐतिहासिक प्रेम कहानियों के जरिए जो आज भी जिंदा है।
राधा-कृष्ण का अटूट प्रेम
वैसे तो हमारे देश में इन दोनों को भगवान माना जाता है, घर-घर इनकी पूजा की जाती है, लेकिन आपको बताएं कि इन दोनों के प्रेम के सभी साक्ष्य आज भी मौजूद हैं मथुर और वृंदावन में। आज भी जब आप यहां की गलियों में घूमेंगे तो आप तक इनके प्यार की महक पहुंचेगी ही। आपको बताएं कि राधा कृष्ण की पत्नी नहीं बन पाईं, रूक्मिणी उनकी पत्नी थी, लेकिन इनके प्रेम की गहराई का पता इसी बात से चलता है कि आज भी कृष्ण का नाम राधा के साथ ही लिया जाता है, रूक्मिणी के नहीं।
लैला-मजनूं की मोहब्बत की दास्तान
इनकी कहानी है सातवीं शताब्दी की। कैस, जिसे की बाद में मजनूं नाम दिया गया, नॉर्दन अरब का रहने वाला थ। कैस को एक बहुत ही अमीर घराने की लड़की लैला से प्यार हो जाता है लेकिन अमीरी गरीबी की ये दीवार जो कि न जाने कितने जमाने से ही प्रेमियों को अलग करने का काम करती रही है, इन दोनों के प्यार को परवाने नहीं चढ़ने देना चाहती थी। लैला की शादी कहीं और कर दी गई। कुछ वक्त बाद उसकी मौत हो गई। कैस को जब इस बात का पता चला तो उसने भी लैला की कब्र के पास आकर जान दे दी। तभी से कैस को मजनूं कहा जाने लगा क्योंकि वो लैला के प्यार में दीवाना हो चुका था। हालांकि इस लव स्टोरी का एंड बहुत ही ट्रैजिक था लेकिन तब की और आज की सिचुएशंस में बहुत फर्क है। प्रेजेंट सिनरियों में उनकी लव स्टोरी का इतना ट्रैजिक एंड होना पॉसिबल नहीं था।
मीराबाई का सात्विक प्रेम
मेरो तो गिरधर गोपाल, दूजो ना कोई.. आपने कई बार घर में बड़े बुजुर्गों को यह भजन गाते हुए सुना होग। इसे मीराबाई गाया करती थीं। आपने वन साइडेड लव के बारे में तो सुना ही होगा, हो सकता है महसूस भी किया हो। मीराबाई का प्रेम भी कुछ ऐसा ही था। उन्हें पता था कि जिसे वो प्यार करती हैं वो उन्हें कभी मिल नहीं सकते लेकिन उनके प्यार पर इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ा और वो जिंदगी भर अपने गिरधर गोपाल को निश्चल मन से प्यार करती रहीं।
शाहजहां-मुमताज महल की अमर प्रेम कहानी
इनके प्यार की जीती जागती निशानी तो आज भी दुनियाभर में मशहूर है..ताजमहल। जो भी इसे देखने जाता है, इसकी खूबसूरती को निहारता ही रह जाता है। शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल जिन्हें की वो बेइतंहा मोहब्बत करने थे उसकी याद में प्यार की इस इमारत को बनवाया था। मुमताज महल को अर्जूमंद बानो के नाम से जाना जाता था। उन्हें मुमताज महल नाम बख्शा था खुद शाहजहां ने। बेगम मुमताज से शाहजहां को इतना प्यार था कि वो उन्हें अपने साथ हर जगह ले जाते थे। शाहजहां को अपनी इस खास बेगम से इतनी मोहब्बत थी, वो उन पर इतना भरोसा करते थे कि उन्होंने अपनी मोहर 'मोहर उजाह' जिसे की कोई भी शहंजाह बेहद संभालकर रखता था, दे दी थी।
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