मोक्ष नगरी काशी में मानस मसान कथा मर्णिकर्णिका घाट के मुर्दों को समर्पित कर संत मोरारी बापू विदा हो गए हैं। नौ दिवसीय रामकथा के दौरान बापू यहां गंगा नदी के बीच ‘कैलाश’ में रहे थे। दो फ्लोर वाली इस खूबसूरत हाउस बोट को श्रीलंका और केरल से आए खास कारीगरों ने तैयार किया था। इस बोट का निर्माण दो महीने की मेहनत से किया गया था। इसके उपरी हिस्से में बापू का कमरा और पूजा की बेदी तो नीचे तीन रूम में भोजन और सेवादारों के रहने का इंतजाम था।
मानस कथा श्रोता भी नावों में सवार होकर कथा स्थल पहुंचते थे। श्रोताओं की सहूलियत के लिए गंगा किनारे विभिन्न घाटों से करीब 170 छोटी-बड़ी नावों का संचालन किया गया। श्रोताओं के आवागमन हेतु यह व्यवस्था निःशुल्क थी।
प्रतिदिन 40 हजार से लेकर 50 हजार तक भक्तों के लिए भोजन की व्यवस्था की गई। इसके लिए 2500 रसोइये गुजरात व अन्य जगहों से बुलवाए गए थे। भोजनशाला में एक साथ 800 बड़े चूल्हों पर भोजन पक रहा था। कई सौ क्विंटल आटा, चावल-दाल का भंडारण था। भक्तों के लिए भोजन प्रसाद की व्यवस्था भी निःशुल्क थी।
विदाई के वक्त हजारों आंखों से बही अश्रुधारा
मानस मसान के मंच से जब बापू नौ दिवसीय रामकथा का विराम कर रहे थे तब भावुकता भरे शब्दों के साथ उनकी आंखों से अश्रुधारा बह रही थी। श्रोताओं की आंखें भी विरह वेदना में छलक रही थी। दिल में अजीब सी बैचेनी और हलचल थी। शायद किसी से बिछड़ने का दर्द हो। बापू ने प्रवाही परंपरा का निर्वहन करते हुए सबके मंगल की कामना की। मानस मसान कथा मणिकर्णिका घाट के उन मुर्दों को समर्पित की जो यहां आए हैं, आ रहे हैं और आएंगे। जिन चार पंक्तियों के साथ कथा प्रारंभ की थी उन्हीं पंक्तियों को गाकर कथा को विराम दिया। जय श्री राम और हर-हर महादेव का जयघोष हुआ। व्यासपीठ से बापू ने सभी को हाथ जोड़कर कृतज्ञता प्रकट की। यह दुर्लभ कथा अब दुबारा शायद ही कभी हो मगर जेहन में ताउम्र ताजा रहेगी। -सुमित सारस्वत, मो.09462737273
Sumit Saraswat available on :
0 comments:
Post a Comment