प्रत्येक मसान महातीर्थ है। यहां भगवान विष्णु की तपस्या और भगवान शिव की लीला है। मसान शिव की क्रीड़ा स्थली, जीव की जागरण स्थली और शव की विश्राम स्थली है। जहां जल, तप, वन, मंत्र और अग्नि यह पांच वस्तुएं हो, वो स्थान तीर्थ है। मणिकर्णिका घाट काशी कामधेनु का मुखचंद्र है। काशी में शंकर के मंदिर कामधेनु के रोम और भैरव उसके सींग हैं। मसान का यह महत्व अंतर्राष्ट्रीय संत मोरारी बापू ने काशी में आयोजित मानस मसान रामकथा में समझाया।
बापू ने कहा मसान वह स्थान है जहां सभी भय समाप्त हो जाते हैं। हर तरह का मोह मिट जाता है। व्यक्ति की इच्छाएं-अभिलाषाएं खत्म हो जाती हैं। मान-सम्मान की चिंता का शमन हो जाता है। न कोई हर्ष होता है न कोई विषाद रह जाता है। शिवत्व प्राप्ति का मार्ग खुल जाता है। काशी की महिमा बताते हुए कहा कि मनुष्य के विचार ही काशी हैं। यहां सत्य, प्रेम और करुणा का भंडार है। काशी आनंदवन है। यहां भगवान विष्णु ने तपस्या की थी। मणिकर्णिका घाट के निकट चक्रपुष्करणी कुंड में भगवान शिव ने स्नान किया था। काशी को कलियुग में काम, दुर्गा और गाय का अंग कहा गया है। मणिकर्णिका महात्म्य की चर्चा करते हुए बापू ने कहा कि मैं विगत आठ दिनों से नित्य मध्यरात्रि से ब्रह्ममुहूर्त तक मणिकर्णिका को निहारता रहता हूं। आठ दिनों में ऐसा अभ्यास हो गया है कि मणिकर्णिका के दर्शन बिना चैन नहीं आएगा। मणिकर्णिका महाश्मशान का एक विशाल चित्र अब मेरे आराधना कक्ष में भी होगा। -सुमित सारस्वत, मो.09462737273
मानस किन्नर पुस्तिका का विमोचन
’देव दनुज किन्नर नर श्रेनी। सादर मज्जहि सकल त्रिवेनी। सुर किन्नर नर नाग मुनिसा। जय जय जय कहि देहि अमीसा।’ इस चौपाई पर आधारित बापू की 784वीं रामकथा ‘मानस किन्नर’ पर उदयपुर राजस्थान निवासी रेखा सोनपी ने पुस्तक लिखी है। बापू ने इस पुस्तिका का विमोचन करते हुए प्रसन्नता व्यक्त की। ‘मानस किन्नर’ कथा किन्नर समाज को समर्पित थी। यह कथा महाराष्ट्र के ठाणे में गत 17 दिसंबर से 25 दिसंबर 2016 तक हुई थी।
सत्य का साहस देती है कथा
बापू ने सीता स्वयंवर प्रसंग सुनाते हुए कहा कि राम नाम से ही विश्व का कल्याण हुआ है। रघुवीर का चरित्र अपरंपार है। रामकथा हमें सत्य बोलने का साहस देती है। प्रलय के अंत में भी राम नाम ही बचेगा। सत्य को कभी भी खंडित नहीं किया जा सकता है। रामचरित मानस और श्रीमद् भागवत राम व कृष्ण की कथा ग्रन्थियों से मुक्त करने वाले परम ग्रन्थ हैं। कलिकाल सिर्फ प्रभु सुमिरन का काल है। भक्ति परक कथा को गंगा और कर्म परक कथा को यमुना कहा है।
अकेले हैं चले आओ..
बापू ने फिल्मी गीत ‘अकेले हैं चले आओ..’ सुनाते हुए अकेलेपन के अहसास की अनुभूति करवाई। कहा, यह फिल्मी गाना नहीं गोपी गीत है। जो कृष्ण को पुकार लगाते हुए गोपियों ने गाया होगा। बापू बोले, अकेलापन अच्छा है। इसमें सुख है। हिम्मत दी कि जिसके पास ईश्वर है वो कभी अकेला नहीं होता। खुश रहो बाप।
देह नहीं, स्नेह संबंध बनाओ
‘मुझे तुम भूल भी जाओ यह हक है तुम्हें, मैंने तो तुमसे मोहब्बत की है’ यह शेर सुनाते हुए बापू ने कहा कि किसी से देह संबंध नहीं, स्नेह संबंध बनाओ। देह संबंध क्षणिक होता है और स्नेह संबंध दीर्घ। भगवान श्रीकृष्ण ने भी सोलह हजार रानियों के साथ स्नेह संबंध बनाए थे। खलील जिब्रान का जिक्र करते हुए बोले कि लीन हुए तो खत्म हो जाओगे। पुकारने में जो आनंद है वो प्राप्ति में नहीं।
कन्या जन्म पर उत्सव मनाओ
बापू ने कहा, घर में बेटी का जन्म हो तो उत्सव मनाओ क्योंकि कन्या के रूप में सात विभूतियां आती हैं। कन्या जन्म से राष्ट्र में सम्पत्ति, विभूति और ऐश्वर्य बढ़ता है। जहां नारी का सम्मान होता है वहां देवताओं का वास होता है। कन्याओं का सम्मान होना चाहिए। कन्या शक्ति, विद्या, श्रद्धा, क्षमा का रूप है। उसका स्वागत कीजिए। भारत की बेटियां महान है।
रामकथा से बदलेगा सास-बहू का नजरिया
बापू ने बेटियों से कहा कि वे रामकथा अवश्य सुनें। इससे हर बहू अपनी सास में कौशल्या देखेगी और सास को अपनी बहू में जानकी दिखने लगेगी। सास और बहू के बीच प्रेम भरा रिश्ता होगा तो देश का भला हो जाएगा।
संतोष और असंतोष की तीन बातें
गृहस्थ जीवन व सांसारिक विहार में हमेशा संतुष्टि रखनी चाहिए। नारी अपने पुरुष और पुरुष अपनी नारी से संतुष्ट रहे। भोजन तथा धन प्राप्ति में भी संतोष रखेंगे तो सुखी रहेंगे। मगर अध्ययन, हरिनाम जप तथा दान देने में हमेशा असंतुष्ट रहना चाहिए।
दुख बिना सुख पता नहीं लगता
बापू ने कहा कि जीवन में सब कुछ अच्छा ही हो, यह संभव नहीं है। याद रखो, जब तक तुम दुख से नहीं गुजरोगे, तब तक सुख की सच्ची कीमत नहीं समझ में आएगी। दुखी होना भी एक योग है। जब तुम दुखी होते हो तो अपने उन कार्यों को याद करते हो जिनके कारण रोना पड़ता है। तभी समझ में आता है कि ऐसा वैसा नहीं करना चाहिए।
तीर्थों को गंदा ना करें
बापू ने अपील करते हुए कहा कि मानसिकता बदलें और तीर्थों को गंदगी से बचाएं। हमें अपने हाथों को संयमित रखना होगा। महादेव ने जिसको सिर पर धारण कर रखा है, उसमें हम कचरा क्यों डालते हैं? ‘हर हर महादेव’ का नाद वातावरण की शुद्धि करता है।
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