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November 15, 2017

क्या तेरा है क्या मेरा है...देख भाई देख !

नब्बे के दशक में दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले हास्य धारावाहिक का यह गाना आज उस वक्त जेहन में ताजा हो गया जब ब्यावर भाजपा के दो कद्दावर नेताओं के आपसी मिलन की तस्वीरें देखी। इन तस्वीरों के पीछे दो राज छुपे थे। पहला यह कि मानो एक-दूसरे से कह रहे हों कि यह राजनीति है। यहां तेरा-मेरा कुछ नहीं। वही होता है जिसमें आका की इच्छा हो। दूसरा छुपा राज जो दिखा वो यह कि मानो एक नेता दूसरे से कह रहा हो कि देख भाई देख। मुझसे नजरें मिला। तस्वीर हकीकत बयां कर रही है कि दोनों की मुलाकात तो हुई मगर नजरें नहीं मिली। बरसों से चंद रोज पहले तक एक-दूसरे के घोर विरोधी बनकर आरोप-प्रत्यारोप करने वाले यह दोनों नेता शायद सामने आने पर एक-दूसरे से नजरें नहीं मिला पाए।

हम बात कर रहे हैं तिलपट्टी के कारण मीठी नगरी के रूप में विख्यात ब्यावर के वर्तमान विधायक शंकर सिंह रावत और पूर्व विधायक देवीशंकर भूतड़ा की। दरअसल भूतड़ा को कल भाजपा में पुनः शामिल करने पर आज रावत ने अपने कार्यालय में स्वागत के लिए आमंत्रित किया था। रावत ने भूतड़ा को माला पहनाकर हाथ तो मिला लिया मगर दोनों के दिल शायद नहीं मिल पाए। माला पहनाने के समय भूतड़ा ने नजरें झुका ली तो हाथ मिलाते वक्त मुंह फेर लिया। पास खड़े भाजपा मंडल अध्यक्ष जयकिशन बल्दुआ और दिनेश कटारिया भी भूतड़ा की अनदेखी करते दिख रहे हैं। भूतड़ा के पार्टी से बगावत करने की वजह भी मंडल अध्यक्ष ही हैं। मीडिया को दिए बयान में भूतड़ा ने साफ कहा है कि 2013 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी ने मंडल अध्यक्ष बदल दिए थे। समर्पित कार्यकर्ताओं के मान-सम्मान की खातिर वे चुनाव मैदान में उतरे। इस फैसले के कारण भूतड़ा को करारी हार का सामना करना पड़ा था। बगावत के कारण पार्टी ने उन्हें निष्कासित कर दिया था। वैसे दोनों नेताओं के बीच मनमुटाव का यह मंजर पहली बार 2008 के विधानसभा चुनाव में सामने आया था। तब पार्टी ने भूतड़ा का टिकट काटकर रावत को प्रत्याशी बना दिया था। तब से अब तक करीब 9 साल से मनमुटाव का मंजर फिर मदद की महफिल में नहीं बदला। -सुमित सारस्वत


..सरदार कौन होगा !
‘किसको फिक्र है कि ‘कबीले’ का क्या होगा, सब लड़ते इस पर हैं कि ‘सरदार’ कौन होगा!’ यह शेर आज ब्यावर भाजपा की स्थिति पर सटीक लगा। अगला विधायक बनने को बेताब दो नेताओं को साथ देखकर कार्यकर्ता और समर्थक यही सोच रहे थे। लोगों में चर्चा रही कि दोनों नेताओं के बीच कार्यकर्ता चकरघिन्नी बन गए हैं। न जाने संगठन का क्या होगा। इसी सोच और भविष्य के भय से कई जनप्रतिनिधि और नेता तो स्वागत कार्यक्रम में नदारद रहे।

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Sumit Saraswat available on :
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