✍🏻 सुमित सारस्वत
बीते विधानसभा और लोकसभा चुनाव (Elections) के बाद जहां एक ओर देश में कांग्रेस (Congress) की स्थिति सुधरी है वहीं दूसरी ओर ब्यावर (Beawar) में कांग्रेस की स्थिति दिनोंदिन बिगड़ रही है. इस विपक्षी पार्टी से कार्यकर्ता ही दूरी बनाने लगे हैं. महिलाओं का तो मानो मोह भंग हो गया. शायद यही वजह है कि पार्टी कार्यक्रमों में कार्यकर्ताओं की कमी दिखने लगी है. किसी नेता की जयंती-पुण्यतिथि हो, या ज्ञापन-प्रदर्शन, गिने-चुने कार्यकर्ता ही पहुंचते हैं. आलम यह है कि पदों पर बैठे पदाधिकारी और नगरीय सत्ता का लाभ भोग रहे पार्षद भी पार्टी कार्यक्रमों में उपस्थित नहीं होते. सच्चाई यह ताजा तस्वीर बयां कर रही है.
कांग्रेस पार्टी की पूर्वज महिला नेत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि देने के लिए गिनती के 27 पुरुष कार्यकर्ताओं संग महज एक महिला मौजूद है. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, ब्यावर कांग्रेस के कार्यक्रमों की अधिकांश तस्वीरों में चुनिंदा कार्यकर्ता ही दिखते हैं. इसे कुशल नेतृत्व की कमी कहें, या संगठन की नीतियों का प्रभाव, इसके जवाब में अधिकांश जिम्मेदार पदाधिकारियों ने एक ही बात कही, 'हम सभी को सूचना देकर बुलाते हैं लेकिन कार्यकर्ता आते नहीं तो क्या करें!'
अब बड़ा सवाल यह है कि यदि वो आते नहीं तो उन्हें पद सौंपने का क्या औचित्य? जो संगठन के लिए समर्पित नहीं उन्हें पदमुक्त क्यों नहीं करते? अगर अभी निकाय चुनाव होते तो 30 प्रतिशत आरक्षित टिकट किन महिलाओं को देते? रफ्तार से भागते वक्त में कछुआ चाल से लुप्त होने को आतुर कांग्रेस को इन सवालों के जवाब गंभीरता से तलाशने चाहिए, अन्यथा अब ब्यावर के किसी कांग्रेस नेता का विधानसभा में जाने और नगर परिषद की सत्ता पर काबिज होने की ख्वाहिश ख्वाब ही रह जाएगी. ©SumitSaraswatSP
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