कहा जाता है जो आप कर्म करते हैं उसका फल कभी न कभी आपको मिल ही जाता है। ऐसा ही मेरे साथ हुआ।
बात उन दिनों की है जब मैंने कॉलेज में दाखिला लिया था। उसी वक्त एक अन्य लड़की ने भी दाखिला लिया था। उसकी सुन्दरता ने मेरे मन के भीतर जगह बना ली थी। मेघा नाम था उसका। धीरे-धीरे हमारी दोस्ती हुई और देखते ही देखते वो दोस्ती प्रेम में तब्दील हो गई। इस साथ से पता ही नहीं चला कब हमारी ग्रेजुएशन हो गई। हम हमारे रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहते थे। हमने हमारे घर वालों को सब बता दिया और हमारी शादी तय हो गई। इस दौरान मेरी नौकरी भी लग गई और मुझे काम के सिलसिले से बाहर जाना पड़ा।
समय कैसे करवट लेता है किसी को नहीं पता। मेघा ने भी स्कूल ज्वाॅइन कर लिया था। एक दिन वो स्कूल से लाैट रही थी कि किसी ने उसका अपहरण कर लिया और उसे अपनी हवस का शिकार बना लिया। शादी के सिर्फ बीस दिन बचे थे। मेरे मन को अब मेघा से शादी करना गवारा नहीं लगा। मुझे लगा अब वो अपवित्र हो गई है। शायद यह मेरी छोटी सोच थी। पर उस समय मुझे उसका एहसास नहीं हुआ। मैं किसी दूसरी लड़की से शादी करके जीवन में आगे बढ़ गया। मेरे घर बेटी ने जन्म लिया। बेटी की किलकारियों ने पता ही नहीं चलने दिया कि वो कब बड़ी हो गई। अब उसकी शादी की बात चलने लग गई। उसको उसी के कॉलेज का दोस्त साहिल पसंद था। उसने हमें बताया और हमने दोनों की शादी तय कर दी। शादी की तैयारियां काफी धूमधाम से चल रही थी और आखिर में विवाह का वो दिन आ गया जिसका हमें बहुत इंतजार था।
समय कैसे करवट लेता है किसी को नहीं पता। मेघा ने भी स्कूल ज्वाॅइन कर लिया था। एक दिन वो स्कूल से लाैट रही थी कि किसी ने उसका अपहरण कर लिया और उसे अपनी हवस का शिकार बना लिया। शादी के सिर्फ बीस दिन बचे थे। मेरे मन को अब मेघा से शादी करना गवारा नहीं लगा। मुझे लगा अब वो अपवित्र हो गई है। शायद यह मेरी छोटी सोच थी। पर उस समय मुझे उसका एहसास नहीं हुआ। मैं किसी दूसरी लड़की से शादी करके जीवन में आगे बढ़ गया। मेरे घर बेटी ने जन्म लिया। बेटी की किलकारियों ने पता ही नहीं चलने दिया कि वो कब बड़ी हो गई। अब उसकी शादी की बात चलने लग गई। उसको उसी के कॉलेज का दोस्त साहिल पसंद था। उसने हमें बताया और हमने दोनों की शादी तय कर दी। शादी की तैयारियां काफी धूमधाम से चल रही थी और आखिर में विवाह का वो दिन आ गया जिसका हमें बहुत इंतजार था।
यह भी पढ़ें : दास्तान-ए-आशिकी, जुबान-ए-इश्क
बेटी तैयार होने के लिए पार्लर गई। वापस लौटते समय उसकी कार को आवारा लड़कों ने घेर लिया। ड्राइवर को मारकर कोने में पटक दिया और मेरी बेटी के साथ दुष्कर्म किया। जब मुझे यह खबर मिली तो मानो पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। अब मुझे मेरी बेटी में वही तीस साल पहले वाली मेघा दिखाई दे रही थी। मुझे लगा साहिल इसको अब स्वीकार नहीं करेगा। पर साहिल की सोच ने मुझे अपने आप को सोचने पर मजबूर कर दिया। उस वक्त उसने मेरी बेटी को मानसिक मजबूत किया जो हम नहीं कर पाते। उन बदमाशों को सजा भी दिलवाई। कुछ दिनों बाद उससे शादी करके उसे उस हादसे को पूरी तरह से भुलाने में मदद की। साहिल ने मुझे कहा, 'मैंने आपकी बेटी को उसकी शारीरिक सुंदरता से नहीं, उसकी आंतरिक सुंदरता से प्रेम किया है।' उसकी बातों ने मेरे मन को छू लिया। अब मुझे अपने आप पर शर्मिन्दगी हो रही थी। यह सोचकर कि जब मेघा को उस समय सबसे अधिक मेरे सहारे की जरूरत थी तब मैंने अपनी दकियानूसी सोच के कारण उसका साथ नहीं दिया।
आज साहिल मुझे अपने आप से बहुत बड़ा दिख रहा था। शायद कोई फरिश्ता, जिसने मुझे ये समझा दिया कि दुष्कर्म करने वालों को दंड मिलना चाहिए, पीड़िता को नहीं। उसके शरीर से ज्यादा हम समाज वाले उसका मानसिक बलात्कार कर देते हैं।
यह भी पढ़ें : मेरे दिल का दर्द
अब मैंने सबसे पहले मेघा को ढूंढने की कोशिश की। कुछ दिनों में उसका पता लग गया। वो अपने जीवन में आगे बढ़ चुकी थी। उसने शादी नहीं की। दुष्कर्म पीड़िताओं के साथ लड़कर उन्हें न्याय दिलाना अपना लक्ष्य बना लिया। मिलते ही मैंने उससे माफी मांगी। उसका दिल बहुत बड़ा निकला। उसने मुझे माफ किया। मैंने भी उसके मिशन को अपना मिशन बनाकर अपनी गलती का पश्चाताप किया।
-लेखिका मीनाक्षी भारद्वाज ज्वलंत व सामाजिक विषयों पर लिखती हैं।
उक्त कहानी पर आप अपने विचार कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखें।
अलवर में हुई घटना के त्वरित बाद लिखी आपकी यह कहानी समाज की सोच को सकारात्मक बनाने और अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करने की प्रेरणा दे रही है। उत्कृष्ट रचना के लिए बधाई और भविष्य के लिए शुभकामनाएं।
ReplyDeleteAisi soch samaj ko ek nayi disha degi...
ReplyDelete