
दरअसल बापू ने यह व्यंग्य उन आलोचकों के लिए किया जो कथा को राजनीति से जोड़ रहे थे। कथा से पूर्व चर्चा थी कि गुजरात चुनाव के कारण इस कथा का आयोजन किया जा रहा है। कथा के माध्यम से नेता मंच पर आकर भाजपा का प्रचार करेंगे। जबकि चार दिन की कथा में अब तक ऐसा कहीं कुछ देखने को नहीं मिला। बापू ने चार दिनों में किसी नेता या राजनीतिक दल का जिक्र तक नहीं किया। उन्होंने कथा के प्रथम दिन ही यह स्पष्ट कर दिया था कि कथा के पवित्र मंच को कभी भी राजनीति का मंच नहीं बनने दिया जाएगा। चुनाव तिथि की घोषणा से पूर्व ही कथा तिथि तय हो गई थी। इस कथा का चुनाव से कोई वास्ता नहीं है। -सुमित सारस्वत, मो.09462737273
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