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पार्टी से निष्कासन के बाद उनसे दूरियां बना लेने वाले भी इस तरह मिले मानो वो उनका ही इंतजार कर रहे थे। वैसे यह समझ से परे है कि भूतड़ा भाजपा से अलग कब हुए। क्या बेटे को घर से निकाल देने पर पिता का नाम बदल जाता है। नहीं, तो फिर भूतड़ा भाजपा से बाहर कैसे हो सकते हैं। निष्कासन के बाद न तो वे किसी अन्य राजनीतिक दल से जुड़े और न ही कभी पार्टी के खिलाफ कोई बयानबाजी की। और तो और बाहर कर दिए जाने के बाद भी वे भाजपा का झंडा थामे रहे और पार्टी का नाम ऊंचा रखने के लिए सदैव अग्रणी रहे। चाहे तिरंगा यात्रा हो या संकल्प से सिद्धि अभियान।
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एकलव्य को गुरु द्रोणाचार्य ने नहीं अपनाया फिर भी उन्होंने गुरु का सम्मान दिया। भूतड़ा ने वैसे ही पद्चिन्हों पर चलते हुए पार्टी को मां की तरह सम्मान दिया। जैसे सुबह का भुला शाम को लौट आए तो उसे भुला नहीं कहते वैसे ही अगर पार्टी से निष्कासित नेता पार्टी में लौट आए तो उसे बागी नहीं कहते।
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सत्य वचन
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